________________
११८ ]
[ तित्थोगाली पइन्नय से और शेष बावीस तीर्थंकर अपनो अपनी जन्म-नगरियों से महाभिनिष्क्रमण कर प्रवजित हुए ।३६०। मल्ली पासो अरहा, सेज्जंसो चेव वासुपुज्जो य । पुव्वण्हे पवइया, सेसा पुण पच्छिमण्हम्मि ३९१। (मल्लिपाहतो, श्रेयांशश्चैव वासुपूज्यश्च । पूर्वाह णे प्रव्रजिताः, शेषाः पुनः पश्चिमाह्न ।)
तीर्थङ्करों के प्रवजित होने का समय
तीर्थंकर मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ, श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य--- . ये चार तीर्थंकर पूर्वाह्न में तथा 'शेष बीस तीर्थंकर मध्याह्नोत्तर काल में प्रवजित हुए ।३६१॥
स्पष्टीकरण- प्रावश्यक मलय में निम्नलिखित गाथा द्वारा पार्श्वनाथ, अरिष्टनेमि, श्रेयांसनाथ, सुमतिनाथ और मल्लिनाथ इन पांच तीर्थकरों के पूर्वाह्न में दीक्षित होने का उल्लेख किया गया है :---]
पासी अरिटुने मो, सेज्जंसो सुमति मल्लिनाथो य । ।
पुवण्हे निक्खंता, सेसा पुण पच्छिमण्हम्मि ।२१०। । एगो भगवं वीरो; पासी मल्ली य तिहिं तिहिं सएहिं । भगवं पि वासुपुज्जो, छहिं पुरुस सएहिं निक्खन्तो ।३९२। (एकः भगवान् वीरः, पार्श्वः मल्ली च त्रिभिस्त्रिभिश्शतैः । भगवानपि वासुपूज्यः, षड्भपुरुषशतैः निष्क्रान्तः ।)
तीर्थंकरों के दीक्षा साथी :
भगवान महावीर एकाकी ही, भगवान् पार्श्वनाथ और मल्लिनाथ दोनों तीन तीन सौ व्यक्तियों के साथ, भगवान् वासुपूज्य छः सौ पुरुषों के साथ महाभिनिष्क्रमण कर प्रवजित हुए ।३६२. उग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खचियाणं च । चउहिं सहस्सेहिं उसभो, सेसा उ सहस्स परिवारा ।३९३।