SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थोगाली पइन्नय | प्रथम तीर्थंकरों का जन्म हुआ। शेष २३ ( क्षेत्रों के तीर्थंकरों को सम्मिलित करने पर २३० ) का जन्म नामक चौथे आरक में हुआ । ३८७ | | ११७ तेवीस तेवीस दुःषमा- सुषम मंडलिया रायाणो, जिण तेवीसं आसि पुव्वभवेसु । उसभी पुण तित्थयरो, बोधव्वो चक्कवट्टी उ । ३८८| (माण्डलिकाः राजानः, जिनाः त्रयोविंशा आसन् पूर्वभवेषु । ऋषभः पुनस्तीर्थकरः, बोधव्यश्चक्रवर्तिस्तु ।) तीर्थंकरों का पूर्वभव राज्य :--- ह तीसरे पर्वभव में २३ ( शेष क्षेत्रों के सम्मिलित करने पर २३०) तीर्थङ्कर मांडलिक राजा और प्रथम तीर्थङ्कर (शेष क्षेत्रों के प्रथम तीर्थंकरों को सम्मिलित करने पर १० तीर्थङ्कर ) चक्रवर्ती थे, यह जानना चाहिये ३८८ तेवीसं तित्थयरा, पुव्वभवे एकारसंगवी आसि । उसभो पुण तित्थयरो, चोदस पुव्वी मुणेयव्वो । ३८९। ( त्रयोविंशतिः तीर्थंकरा, पूर्वभवेष्वेकादशांगविद आसन् । ऋषभः पुनस्तीर्थङ्करश्चतुर्दशपूर्वी मुनेतव्यः ) पूर्वभव अंग ज्ञान : अपने तीसरे पूर्वभव में अजितादि महावीरान्त तेवीस तीर्थंकर एकादशांगधर और केवल एक ऋषभदेव चौदह पूर्वी अर्थात् द्वादशांगधर थे, यह जानना चाहिये | ३८६ | उसभी य विणीयाए, बारवतीए अरिट्ठवरनेमी । अवसेमा तित्थयरा, निक्खता जम्मभूमीसु | ३९० | ( ऋषभश्च विनीतायां, द्वारावत्यामरिष्टवर नेमोः । अवशेषास्तीर्थकराः निष्क्रान्ता: जन्मभूमीसु ) तीर्थंकरों की अभिनिष्क्रमण नगरियां :-- ऋषभदेव विनीता नगरी से, अरिष्टनेमि द्वारावती ( द्वारिका )
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy