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[ तित्थोगाली पइन्नय
महावीर अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ मल्लिनाथ और वासुपूज्य इन (दशों क्षेत्रों के ५०) तीर्थंकरों को छोड़कर अवशिष्ट (१६०) तीर्थंकर राजा थे । ३८४ |
रायकुलेसु वि जाया, विसुद्धवंसेसु खत्तिय कुलेसु ।
न य इच्छिया भिसेया कुमारवासेसु पव्वइया । ३८५ ।
(राजकुलेष्वपि जाताः, विशुद्धवंशेषु क्षत्रियकुलेषु । न चेच्छिताभिषेका. कुमारवासेसु प्रव्रजिताः । )
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क्षत्रिय कुलों विशुद्ध वंशों एवं राजकुलों में उत्पन्न होकर भी इन (५०) तीर्थंकरों ने राज्याभिषेक की कामना नहीं की और ये कुमार वास (कुमारावस्था) में ही प्रव्रजित हों गये । ३८५ । संती कुंथू य अरो. अरहत्ता चैव चक्कवट्टी य ।
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अवसेसा तित्थयरा, मंडलिया आमि रायाणो । ३८६ । (शान्तिः कुंथुश्च अरः, अर्हताः चैव चक्रवर्तिनश्च । अवशेषा तीर्थंकराः माण्डलिका आसन् राजानः । )
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शान्तिनाथ कुंथुनाथ और अरनाथ ये (दशों क्षेत्रों के ३० ) तीर्थंकर अर्हत् (तीर्थेश्वर ) भी थे और चक्रवर्ती भी शेष (कुमारवास में प्रव्रजित महावीर आदि दशों क्षेत्रों के ५० तीर्थंकरों को छोड़कर---. १६०) तीर्थंकर माण्डलिक राजा थे । ३८६ । उसभजिणो उप्पण्णो, विरमंते सुसम दूसमाए । तेवीसं तित्थयरा, दूसम सुसमाए उप्पण्णाः । ३८७ । (ऋषभजिन उत्पन्नः, विरमति पुष्पम - दुःषमायाम् । त्रयोविंशतिः तीर्थकराः दुःषम पुष्पमायामुत्पन्नाः । )
तीर्थंकरों के जन्म आरक :---
सुषमा दुःषम नामक तीसरे ओरक के समाप्ति की ओर बढ़े अन्तिम चरण में (अर्थात् जब तीसरे प्रारक के समाप्त होने में संख्यात वर्ष -.. --- ८४ लाख पूर्व, ३ वर्ष ८३ मास प्रवशिष्ट थे तब ) भगवान् ऋषभदेव ( शेष ४ भरत और ५ ऐरवत इन क्षेत्रों के
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