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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ ११५ चक्रवतियों और वासुदेवों - इन महापुरुषों के तीनों वर्गों का यही आयु प्रमाण जानना चाहिये । ३८१ । ३८१ प्रतविव नास्ति - (यहाँ एक गाथा (सं० ३८१ मू० प्र०) हमारे पास की प्रति में नहीं है । पूर्वापर सम्बन्ध को देखते हुए अनुमान किया जाता है कि वह कोई उपक्रम गाथा होगी जिसमें यह उल्लेख किया गया होगा कि तीर्थ करों, चक्रियों और वासुदेवों के देहमान और आयुष्य का कथन समाप्त हुआ, अब तीर्थङ्करों के वंश, गोत्र आदि का कथन किया जाता है ।) मुणि सुव्यय वर (घर) जिणो, नेमि अग्गिसेण हरिवंसे । अवसेसा तित्थयरा, सव्वे इक्खाग बसाउ | ३८२ | ( मुनि सुव्रतश्च (घर) जिनः नेमि अग्निसेनः हरिवंशे | अवशेषाः तीर्थंकराः सर्वे इक्ष्वाकुवंश्याः । ) मुनि सुव्रत और घर (वर), अरिष्टनेमि तथा श्रग्निसेन ये (दशों क्षेत्रों के २०) तीर्थंकर हरिवंश में उत्पन्न हुए । शेष (२२०) तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंशी थे । ३८२ । 1 मुणि सुव्वओ धरो बिहु गोयमगोचाग्गिसेण नेमी य । अवसेसा तित्रा, कासवगुत्ता मुणेयव्वा | ३८३ | ( मुनि सुव्रतः घरो द्वौ, गौतम गोत्राग्निसेन नेमी च । अवशेषाः तीर्थङ्कराः, काश्यपगोत्रा मुनेतव्याः । ) मुनि सुव्रत और घर ये दोनों तथा अग्निसेन एवं अरिष्टनेमि ये (दशों क्षेत्रों के २०) तीर्थंकर गौतमगोत्रीय थे । अवशिष्ट (२२०) तीर्थंकर काश्यप गोत्रीय जानने चाहिये । ३८३ | वीरो अरिट्ठनेमी, पासो मल्ली य वासुपुज्जो य । एते मोत ण जिणे, अवसेसा आसि रायाणो । ३८४ | (वीरः अरिष्टनेमी:, पार्श्व: मल्लिश्च वासुपूज्यश्च । एतान् मुक्त्वा जिनान, अवशेषा आसन् राजानः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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