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तित्थोगाली पइन्नय ]
बत्तीसं घरयाई काउं तिरियाययाहिं रेहाहिं |
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उडूढायाहिं काउं, पंच घरयाइँ तो पढमे । ३५८ ।
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( द्वात्रिंशत गृहाणि कृत्वा तिर्यगायताभिः रेखाभिः । ऊर्ध्वाधभिः कृत्वा, पंच गृहाणि ततः प्रथमे ।)
खड़ी ३२ और पडी ५ रेखाएं खींचकर ऊपर से नीचे पांच पंक्तियों में सेंतीस - सेंतीस समचोरस घर बनाये जायें। तदनन्तर प्रथम पंक्ति पर - १३५८।
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पन्नरस जिण निरंतर, सुन्न दुर्गं ति जिण सुन्न तियगं च । दो जिण सुन्न जिणिंदो, सुन्न जिणो सुन्न दोन्नि जिणा | ३५९ | ( पंचदश जिना निरन्तर, शून्यद्विकं त्रयो जिना शून्य त्रिकं च । द्वौ जिनौ शून्यं जिनेन्द्रः, शून्यं जिनः, शून्यं द्वौ जिनौ ।) ! इति प्रथमा पंक्तिः ]
प्रथम पंक्ति:
निरन्तर पन्द्रह घरों में क्रमशः पन्द्रह तीर्थङ्करों के नाम, फिर आगे के दो घरों में शून्य, फिर ३ घेरों में सोलहवें से अठारहवें तीन तीर्थङ्करों के नाम, फिर आगे के तीन घरों में शून्य, उससे आगे के दो घरों में उन्नीसवें और बीसवें दो तीर्थङ्करों के नाम, उससे आगे के एक घर में शून्य, फिर आगे के एक घर में इकवीसवें तीर्थङ्कर का नाम, आगे के एक घर में शून्य, उससे आगे के एक घर में बावीसवें तीर्थङ्कर का नाम उससे आगे के एक घर में शून्य और उससे आगे के शेष दो घरों में तेवीसवं और चौवीसवें तीर्थ करों के नाम । ३५६ ।
[ द्वितीया पंक्तिः ]
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दो चक्की सुन्नतेरस, पण चक्की सुन्न चक्की दो सुन्ना । चक्की सुन्न दु चक्की, सुन्नं चक्की दुसुन्नं च ३६० ।
(द्वौ चक्रिणौ शून्य त्रयोदश, पंच चक्रिणः शून्यं चक्री द्व े शून्ये ।
चक्री शून्यं द्वौ चक्रिणौ शून्यं चक्री द्व े शून्ये च ।)
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[ इति द्वितीया पंक्ति |