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( चतसृष्वप्येरवतेषु एवं चतसृष्वपि च भरतवर्षेषु । अष्टाविंशतिः च शतं, स्वर्णवर्णं जिनेन्द्राणाम् । )
[ तित्थोगाली पइन्नय
एवं - इस प्रकार ( जिस प्रकार कि जम्बूद्वीप के एक भरत और एक ऐरवत क्षेत्र में दो दो एक ही समय में उत्पन्न हुए उपरिवरित ऋषभ चन्द्रानन आदि ३२ तीर्थंकर तपाये हुए शुद्ध श्रेष्ठ स्वर्ण के रंग के समान वर्ण वाले थे उसी प्रकार उपरिचर्चित दो दो तीर्थकरों के जन्म के साथ साथ बिना एक क्षण के अन्तर के - - शतशः ठीक एक ही समय में आठ आठ की संख्या में जन्मे हुए, धातकी खण्ड और पुष्करार्द्ध द्वीप के ) चारों ही भरत क्षेत्रों और चारों हो ऐरवत क्षेत्रों में १२८ तीर्थंकरों का वर्ण प्रतप्त स्वर्ण के समान था । ३५५।
[ स्पष्टीकरण:--- ढाई द्वीप में पाँच भरत क्षेत्र हैं --- एक जम्बूद्वीप का दो धातकी खण्ड के और दो ही पुष्करार्द्ध द्वीप के । इसी प्रकार ढाई द्वीप में पांच ऐरवत क्षेत्र हैं:--एक जम्बूद्वीप का दो धातकी खण्ड द्वीप के और दो ही पुष्करार्द्ध द्वीप के । प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल में इन देशों क्ष ेत्रों में प्रत्येक में चौवीस-चौवीस तीर्थ करों के हिसाब से दश चौवीसियां, तदनुसार २४० तीर्थंकर हुए । ३३६ से ३५५ तक की २० गाथाओं का सारांश यह है कि इन २४० तीर्थ करों में से बीस तीर्थङ्करों का देह वर्ण श्यामल, बीस का प्रियंगुवर्णाभ, बीस का पद्मगर्भगौर, बीस का चन्द्र की दुग्ध-धवल चांदनी के समान श्वेत और शेष १६० तीर्थकरों का वर्ण तपाये हुए श्रेष्ठ स्वर्ण के समान था ।]
दससुवि वासेसेतो, जिणिंद चंदाण सुणसु संठाणं । वज्जरिसभ संघयणा, समंचउरंसाय संठाणे | ३५७/ (दशष्वपि वर्षेषु इतः, जिनेन्द्रचन्द्राणां शृणु संस्थानम् । वज्रऋषभ संहननाः, समचतुरस्राश्च संस्थाने )
ढाई द्वीप के पांच भरत और पांच ऐरवत इन दशों ही क्षेत्रों हुए (२४०) तीर्थेश्वरों के संस्थान के सम्बन्ध में अब सुनिये। वे सबके सब (सभी) वज्रऋषभ संहनन और समचतुरस्र संस्थान के धनी थे | ३५७ )