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________________ तित्थोगाली पइन्नय] [ १०५ कुंथू य भरहवासे एरवयम्मि य महाहि लोगवलो । अर जिणवरो य भरहे, अइपास जिणो य एरवए ।३५३। (कुन्थुश्च भरतवणे ऐरवते च महाहि लोकबलः । अर जिनवरश्च भरते. अतिपार्श्वजिनश्चैरवते ।) इस भरत क्षेत्र के १७ वें तीर्थ कर कुंथुनाथ, ऐरवत क्षेत्र के १७ वें तीर्थ कर लोक बल, इस भरत क्षेत्र के अठारहवें तीर्थ कर अरनाथ, ऐरवत क्षेत्र के भी १८ वें तीर्थ कर अतिपार्श्व -३५३। नमि जिणवरो य भरहे, एरवए सामकोट जिणचंदो । भरहम्मि य वीर जिणो, एरवए वारिसेणो वि ।३५४। (नमिः जिनवरश्च भरते, ऐरवते श्यामकोष्ठ-जिनचन्द्रः । भरते च वीर जिनः, ऐरवते वारिषेणोऽपि ।) . जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र के इकवीसवें तीर्थ कर नमिनाथ, ऐरवत क्षेत्र के २१ वें तीर्थ कर श्यामकोष्ठ, इसी भरत के चौवीसवें तीर्थकर वीर (महावीर-वर्द्ध मान) और महावीर की जन्मवेला-पुल नक्षत्र में. जम्बूद्वीपस्थ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न हुए वहां के चौवीसवें तीर्थ कर वारिषेण-३५४० केवल नाणुज्जोइय, जियलोय पयच्छवत्थुसब्भावा । एते बत्तीस जिणा, सुवण्णवण्णा मुणेयव्या ।३५५। (केवलज्ञानोयोतित, त्रिलोक प्रत्यक्ष-वस्तु-सद्भावाः । एते द्वात्रिंशज्जिनाः, सुवर्णवर्णाः मुनेतव्याः ।) ये केवलज्ञान द्वारा प्रकाशित त्रैलोक्य के समस्त चराचरजड़-चेतन पदार्थों के त्रिकालवर्ती भावों को प्रत्यक्ष देखने जानने वाले बत्तीसों ही तीर्थ कर प्रतप्त स्वर्ण के समान वर्ण वाले थे—यह जानना चाहिये । ३५५। चउसुवि एरवए सुं, एवं चउसुवि य भरहवासे सु । अट्ठावीसं य सयाणं, सुवण्णवण्णं जिणंदाणं ॥३५६।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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