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[ तित्थोगाली पइन्नय
. इस भरत क्षेत्र के छटे तीर्थंकर पद्मप्रभ और उनके समवयस्क, जम्बूद्वीप के ऐरवतक्षेत्र के छठे तीर्थंकर वयधारी, इस भरत क्षेत्र के बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य और उनके जन्म की वेला में हो उत्पन्न हुये, जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र के बारहवें तीर्थकर'श्रेयांस ।३४३। चउसु वि एरवएसु, एवं चउसु वि य भरहवासेसु । एते वीस जिणंदा, बंधु कुसुमुप्पभा नेया ।३४४।। (चतसष्वप्येवतेषु, एवं चतसष्यपि च भरतवर्षेषु । एते विंशत् जिनेन्द्राः बंधूक कुसुमप्रभाः शेयाः।)
तथा धात की खण्ड द्वीप एवं पुष्कराद्ध द्वीप के चार भरत और चार ऐरवत क्षेत्रों में पद्मप्रभ के जन्म समय में उत्पन्न हये आठ छठे तीर्थकर तथा वासु पूज्य की जन्म वेला में उत्पन्न हये उक्त आठों क्षेत्रों के बारहवें पाठ तीर्थंकर. इस प्रकार अवसर्पिणी की दश क्षेत्रों की दश चौवीसियों के २४० तीर्थंकरों में से बीस (ढाई द्वीप के १० छठे और १० बारहवें) तीथं कर बंधूक कुसुम को प्रभा के समान वर्ण वाले जानने चाहिए ।३४४। चंदप्पो य भरहे, एरवए दीहासणो जिणचंदो । सुविही य भरहवा से, एरवयंमि य सयाउ जिणो ।३४५। (चन्द्रप्रभश्च भरने, ऐरवते दीर्घषण जिनचन्द्रः । सुविधिश्च भरतवणे, ऐरवते च शतायुः जिनः ।)
इस भरत क्षेत्र के आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभ और उन्हीं की जन्म बेला में उत्पन्न हुए जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र के आठवें तीर्थङ्कर दीर्घासन, इसी भरत क्षेत्र के नौवें तीर्थङ्कर सविधिनाथ तथा उनके समवयस्क, जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र के नौवें तीर्थंकर शतायु-१३४५॥ चउसु वि एरवएसु, एवं चउसु वि य भरहवासेसु । एते वीसं धवला, जिणचंदा होति नायव्वा ३४६। (चतसष्वप्येरवतेषु, एवं चतसम्वपि च भरतवर्नेषु । एते विंशतिः धवलाः, जिनचन्द्राः भवन्ति ज्ञातव्या ।)