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________________ तित्योगाली पइन्नय ] [ १०१ इसी प्रकार धातकी खण्ड एवं पुष्करार्द्ध द्वीप के चारों भरत क्षत्रों और चारों एरवत क्षेत्रों में (भगवान् मुनि सुत्रत तथा भगवान् अरिष्टनेमि के साथ एक ही समय में ) उत्पन्न हुये सोलही ( १६ ही ) तोर्थंकर श्याम के थे, यह ज्ञातव्य है । ३४०| ( इस प्रकार वर्तमान अवसर्पिणी काल की ढाई द्वीप मं हुई १० चौवीसयों के २४० तीर्थ करों में से २० तीर्थंकर श्यामवर्ण के थे ।) 1 पासोय अग्गिदत्तो, गल्ली मरुदेवी केवली चेव । एते चचारि जिणा, प्रियंगु सामा मुणेयव्वा । ३४१ । (पार्श्वश्च अग्निदत्तः, मल्ली: मरुदेवी केवली चैत्रः । एते चतस्रो जिनाः, प्रियंगुश्यामाः मुनेतव्याः । ) जम्बूद्वीप के भरतक्षत्र के तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवं 'उनके साथ एक ही समय में उत्पन्न हुये जम्बूद्वीप के एरेवत क्षेत्र के २३ वें तीर्थ कर अग्निदत्त तथा जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के १६ वें तीर्थ कर मल्लीनाथ एवं उनके जन्म के साथ ही उत्पन्न हुये जम्बूद्वीप के एरवत क्षेत्र के १६ वें तीर्थंकर मरुदेवी ( मरुदेव ) – ये चारों प्रियंगुश्यामाभ वर्ण के थे ऐसा जानना चाहिए । ३४१ । 1 पंचसु rears, एवं पंचसु वि भरहवासे । बीपियंगुवण्णा, अहिंसि ओसप्पिणीए जिणा | ३४२ | (पंच ऐरवते. एवं पंचस्वपि भरतवर्षेषु । विंशति प्रियंगुवर्णाः अस्यामवसर्पिण्यां जिना: । ) इस प्रकार ढाई द्वीप के पाँच ऐरवत क्षेत्रों और पाँच भरत क्षेत्रों में इस अवसर्पिणो काल के २४० तीर्थ करों में २० तीर्थ कर जामुन के रंग के समान देह के वर्ण वाले थे । ३४२ । उपभो य भरहे वयधारे जिणो य एरवयवासे । 1 1 भरमि वासपुज्जो, सिज्जंसो तह य एरवए । ३४३ | (पद्माप्रभश्च भरते, व्रतधारी जिनश्चैरवतवर्षे । भारते वासुपूज्यः, श्रीयांशस्तथा च ऐरवते ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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