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________________ १०० ] [ वियोगाली पइन्नय और ऐरवत क्षेत्र की चौबीसी के १६ - इस प्रकार जम्बू द्वीप के दोनों क्षेत्रों की अवसर्पिणी काल की दो चौबीसियों के शेष ३२ तीर्थंकरों के वर्णं का उल्लेख करते हुये तित्थोगाली पइन्नयकार कहते हैं : वरकणगतविय वण्णा, बत्तीस सेसगा जिंणवरिंदा | भरहे एवं वा, दंससुबि खेत्तेसु जिणचंदा | ३३८ । ( वरकन कतापितवर्णाः, द्वात्रिंशत् शेषका : जिनवरेन्द्राः । भरते ऐरवते वा, दशस्वपि क्षेत्रेषु जिनचन्द्राः । ) शेषं बत्तीस (३२) तोर्थ कर तपाये हुये शुद्ध एवं श्रेष्ठ स्वर्ण के वर्ण के समान शरीर की कान्ति वाले थे। इसी प्रकार धातकी खण्ड के दो भरत क्ष ेत्रों एवं दो एरवत क्ष ेत्रों तथा पुष्करार्द्ध द्वीप के दो भरत क्षेत्रों और एरवत क्षेत्रों के शेष १२८ ( ढाई द्वीप के दश क्षेत्रों के शेष कुल १६० ) तीर्थंकर प्रतप्त शुद्ध श्रेष्ठ स्वर्ण के समान वर्ण वाले थे । ३३८ । fiore भर, एरवयम्मि वरो य सामलगा ।. भरहे अरिनेमिं एरar अग्गिसेणोति ॥ ३३९ | 1 ( मुनि सुव्रतः भरते, ऐरवते वरश्च श्यामलकाः । भरते अरिष्टनेमिः ऐरवते अग्निषेण इति ।) , जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में मुनि सुव्रत और उनके साथ ही एरवत क्ष ेत्र में उत्पन्न हुये तीर्थंकर वर (घर) भरत क्ष ेत्र में भगवान अरिष्टनेमि और उनके साथ एक ही वेला में उत्पन्न हुये एरवत क्ष ेत्र के बावीसवें तीर्थंकर अग्निषेण श्यामवर्ण के थे । ३३६ । चउसु वि एव सु, एवं चउसु विय भरह वासेसु । सोलस वि सामलंगा, जिणचंदा होंति नायव्वा । ३४० | ( चतसृष्वपि ऐरवतेषु, एवं चतसृष्वपि च भरतवर्षेषु । षोडश अपि श्यामलांगाः, जिनचन्द्राः भवन्ति ज्ञातव्याः । )
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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