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________________ तित्योगाली पइन्नय ] एवं भणिया जम्मा, दससु वि खेत सु जिणवरिंदाणं । एतो परं तु वोच्छं, वण्णविभागं समासेणं । ३३६ | ( एवं भणिताः जन्मानि दशष्वपि क्षेत्रेषु जिनवरेन्द्राणाम् । इतः परं तु वक्ष्ये, वर्णविभागं समासेन ।) इस प्रकार ढाई द्वीपों के पांच भरत क्षेत्रों एवं पांच एरवत क्षेत्रों - इस प्रकार दश क्षेत्रों के तीर्थंकरों के जन्म समय का कथन किया। अब इससे आगे मैं उन तीर्थंकरों के वर्णविभाग का संक्षेपतः वरणन करूंगा । ३३६ चचारि कालगा जिणवराउ, चउरो पियंगु वण्णामा | चचारि पउमगोरा, ससिप्पभा होंति चचारि | ३३७। ( चत्वारः कालका जिनवरास्तु चत्वारो प्रियंगुवर्णाभाः । चत्वारो पद्मगौराः, शशिप्रभा भवन्ति चत्वारि ।) " [ εε 1 चार तीर्थंकर श्यामवरं के चार प्रियंगु अर्थात् जामुन के रंग जैसी प्रभा वाले, चार तीर्थंकर पद्मगर्भ के समान गौरवर्ण के, चार तीर्थंकर चन्द्रमा की चटक चाँदनी के समान श्वेत वर्ण के थे ।३३७। ( स्पष्टीकरण :-- इस गाथा में वर्ण विभाग की दृष्टि से विभिन्न वर्गों के तीर्थंकरों की जो संख्या १६ दी गई है वह केवल जम्बू द्वीप के भरत तथा ऐरवत क्षेत्र के तीर्थंकरों को ही है । इन तीर्थं करों के साथ धातकी खण्ड और पुष्करार्ध द्वाप के भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में उत्पन्न हुये ६४ तीर्थंकरों की संख्या को जोड़ने पर अवसर्पिणी काल की दश चौबीसियों (पांच चौबोसियाँ ढाई द्वीप के ५ भरत क्षेत्रों की और पांच ही चौत्रीसियां ढाई द्वीप के पांच एरवत क्षेत्रों की ) । के २४० तीर्थ करों में से ८० तीर्थं करों के वर्णों का उल्लेख इस गाथा में बताया गया है ।) जम्बू द्वीप के भरत खण्ड की चौबीसी के प्राठ तथा एरवत क्षेत्र की चौबीसी के आठ इस प्रकार १६ तीर्थंकरों के वर्णों के विवरण के पश्चात् जम्बूद्वीप के भरत खण्ड की चौबीसी के शेष १६
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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