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________________ [ तित्थोगाली पइन्नय ८] (नमिः जिनचन्द्रः भरते ऐरवते श्यामकोष्ठः जिनचन्द्रः । एकसमयेन जाताः, दशाऽपि जिना अश्विनीयोगे ।] इक्कीसवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में नमिनाथ और ऐरवत क्षेत्र में श्यामकोष्ठ ये दशों तीर्थंकर दशों क्षेत्रों में एक ही समय में चन्द्र का अश्विनी नक्षत्र के साथ योग होने पर उत्पन्न हुए । ३३२ | भर अरिनेमि, एरar अग्गिसेण जिणचंदो । एगसमएण जाया. दसवि जिणा चित्त जोगम्मि ३३३| ( भरते अरिष्टनेमिः, ऐरवते अग्निषेण जिनचन्द्रः । एकसमयेन जाताः, दशाऽपि जिनाः चित्रायोगे ) बावीसवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में प्ररिष्टनेमि और ऐरवत क्षेत्र में अग्निषेण - ये दशों तीर्थंकर चन्द्र का चित्रा नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही वेला में उत्पन्न हुए । ३३३ | पासो य भरहवासे, एरवए अग्गिदत्त [ उत्त] जिणचंदो । एग समएण जाया, दसवि विसाहाहि जोगंमि | ३३४ | (पार्श्वश्च भारतवर्षे, ऐरवते अग्निदच [गुप्त ] जिनचन्द्रः । एक समयेन जाताः, दशाऽपि विशाखायोगे ।) बीसवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में पार्श्वनाथ और ऐरवत क्षेत्र में अग्निदत्त, ये दश तीर्थंकर चन्द्र का विशाखा के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुये ॥ ३३४ ॥ भरहे वीर जिणिंदे, एखए वारिसेण जिणचंदो | हत्त्युत्तराहि जोगे, जाया तित्थंकरा दसवि ३३५ । (भरते वीर जिनेन्द्र:, ऐरवते वारिषेण जिनचन्द्रः । हस्तोत्तरायाः योगे. जाताः तीर्थंकराः दशाऽपि ।) चौवीसवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में वीर (महावीर ) प्रौर एरवत क्षेत्र में वारिषेण ये दशों ही तीर्थंकर चन्द्रमा का हस्तोत्तरा नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुए । ३३५।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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