________________
तित्थोगाली पइन्नय ]
कुंथू य भरहवासे, एरवयंमि य महाहि लोगवलो । एगसमएण जाया, दसवि जिनिंदा कित्तियाजोगे । ३२९ | ( कुथुश्च भारतवर्षे, ऐरवते च महाहि लोकबलः । एकममयेन जाताः, दशोऽपि जिनेन्द्राः कृत्तिकायोगे ।)
सत्रहवें तीर्थकर भरत क्षेत्र में कुथुनाथ और ऐरवत क्ष ेत्र में लोकबल - ये दशों तीर्थंकर चन्द्रमा का कृत्तिका नक्षत्र के साथ योग होने पर एक समय में उत्पन्न हुए ३२६ होइअरो य महंतो भरहे अइपास जिणो य एखए । एगसमरण जाया, दसवि जिणा रेवई जोगे | ३३० | ( भवति अरश्न महान् भरते अतिपार्श्वः जिनश्चैरवते । एकसमयेन जाताः, दशाऽपि जिना रेवतीयोगे ।)
[ ६७
अठारहवें तीर्थङ्कर भरत क्षेत्र में अरनाथ और ऐरवत क्ष ेत्र में अतिपार्श्व -- ये दशों तीर्थङ्कर चन्द्रमा का रेवती नक्षत्र के साथ योग होने पर एक समय में उत्पन्न हुए । ३३०| मल्ली य भरहवासे, मरुदेवी जिणो य एरवयवासे ।
एगसमएण जाया. दसबि जिणा अस्सिणी जोगे । ३३१ | (मल्ली च भारतवर्षे, मरुदेवी [वो] जिनश्चैरवतवर्षे ।
एक समयेन जाताः, दशाऽपि जिना अश्विनीयोगे ।)
उन्नीसवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में मल्लीनाथ और ऐरवत क्षेत्र में मरुदेवी ( मरुदेव ) - ये दशों तीर्थंकर अश्विनी नक्षत्र के योग में एक ही समय जन्मे । ३३१ ।
( बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत और ऐरवत के तीर्थंकर वर के उल्लेख की गाथा संभवतः लिपिक के दोष से मूल प्रति में नहीं लिखी गई है ।) नमि' जिणचन्दो भरहे, एरवए सामकोह [ ड] जिणचंदो ।
एगसमरण जाया, दसवि जिणा अस्सिणी जोगे । ३३२ |
१ विशतितमतीर्थंकर मुनिसुव्रतस्थाय तस्य समये ऐरवत क्षेत्रे जातस्य तीर्थङ्करस्य च नात्र समुल्लेखं विद्यते । लिपिक दोषेणैका गाथाव परित्यक्त ेति सुनिश्चितमेव ।