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________________ ६ ] [ तित्थोगाली पइन्नय तेरहवें तीर्थंकर भरत क्ष ेत्र में विमलनाथ और ऐरवत क्षेत्र में सिंहसेन - ये दशों ही तीर्थंकर उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र में एक ही समय उत्पन्न हुए । ३२५ । भर य अनंत जिणो एखए असंजलो जिणवरिंदो । एग समयेण जाया दसवि रेवईयोगे । ३२६ | ( भरते च अनंतजिनः ऐरवते असंजलो जिनवरेन्द्रः | एक समयेन जाताः दशाऽपि रेवतीयोगे ।) चौदहवें तीर्थंकर भरत क्ष ेत्र में अनन्तनाथ और ऐरवत क्ष ेत्र में संजल ये दशों ही चन्द्र का रेवती नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न ह ुए । ३२६ । धम्मो य भरहवासे, उवसंत जिणो य एरवयवासे । ए समएण जाया, दसवि जिणा पुरुस जोगम्मि | ३२७ | (धर्मश्च भारतवर्षे, उपशान्तजिनश्चैरवतवर्षे | एक समयेन जाताः दशाऽपि जिनाः पुष्ययोगे ।) पन्द्रहवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में धर्मनाथ तथा ऐरवत क्षेत्र में उपशान्तये दशों तीर्थंकर चन्द्रमा का पुष्य नक्षत्र के साथ योग होने पर दशों क्षेत्रों में एक ही साथ हुए । ३२७ । संती य भरहवासे, एखए दीहसेण जिणचन्दो | एग समएण जाया, दसवि जिनिंदा भरणि जोए | ३२८ | (शान्तिश्च भारतवर्षे, ऐरवते दीर्घषेण जिनचन्द्रः | एक समयेन जाताः दशाऽपि जिनेन्द्राः भरणियोगे ।) , सोलहवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में शान्तिनाथ और ऐरवत क्षेत्र में दीर्घसेन ये दशों ही तीर्थंकर चन्द्र का भरण नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुए । ३२८ |
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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