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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ ९५ दर एक ही समय में उत्पन्न हुए ।३२१॥ भरहे य सीयल जिणो, एरवए मुबई जिणवरिंदो । पुव्वासाढारिक्खे, जाया जिणपुंगवा एते ।३२२। (भरते च शीतलजिनः, ऐरवते सुव्रती जिनवरेन्द्रः । पूर्वाषाढा ऋक्षे, जाताः जिनपुंगवा एते ) दशवें तीर्थकर भरत क्षेत्र में शीतलनाथ और ऐरवत क्षेत्र में सुव्रती ये दशों तीर्थंकर चन्द्र का पूवाषाढ़ा नक्षत्र के साथ योग होने पर उत्पन्न हुए ।३२२॥ भरहे सेज्जंस जिणो, एरवए जुत्तिसेण जिणचन्दो। एग समएण जाया, दसवि जिणिंदा सवण जोगे ।३२३॥ (भरते श्रेयांस जिनः, ऐरवते युक्तिसेन जिनचन्द्रः। एक समयेन जाताः दशाऽपि जिनेन्द्राः श्रवणयोगे ।) ग्यारहवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में श्रेयांस नाथ और ऐरवत क्षेत्र में युक्तिसेन ये पांच भरत और पांच ऐरवत क्षेत्र के दश तीर्थंकर चन्द्र का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुए।३२३। भरहे य वासपुज्जो, सेजसजिणो य एरवय वासे । सयभिसया नक्खत्ते, दसवि जिणिदा समं जाया ।३२४ (भरते च वासुपूज्यः, श्रेयांस जिनश्चैरवतवर्षे । शतभिषा नक्षत्रे, दशाऽपि जिनेन्द्राः समं जाताः ।) बारहवें तीर्थंकर भरत क्षेत्र में वासुपूज्य और ऐरवत क्षेत्र में श्रेयांस ये दशों तीर्थ कर शतभिषा नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुए ।३२४ विमलो रह भरहवासे, एरवए सीहसेण जिनचंदो । उत्तर भवयाहिं, दसवि जिणा एग समयेणं ।३२५। (विमलोऽहत् भारतवर्षे. ऐरवते सिंहषेण जिनचन्द्रः । उत्तराभाद्रपदायां, दशाऽपि जिनाः एक समयेन ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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