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तित्योगाली पइन्नय }
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और धातकी खण्ड तथा पुष्क रार्द्ध द्वीप के चार भरत और चार ही ऐरवत इन आठ क्षेत्रों में चन्द्रप्रभ की जन्म-वेला में ही उत्पन्न हए आठवें आठ तीथ कर तथा सुविधिनाथ के जन्म समय में एक ही वेला में उत्पन्न हए नौवें आठ तीर्थकर इस प्रकार कूल बीस (२०) तीर्थ कर श्वेत वर्ण के होते हैं, ऐसा जानना चाहिए ।३४६। उसभो य भरहवासे, बालचंदाणणो य एरवए । अजिए उ भरहे वासे, एरवयंमि य सुचंद जिणो ।३४७। (ऋषभश्च भरतवर्षे, बाल-चन्द्राननश्चैरवते । अजितस्तु भारत वर्षे, ऐरवते च सुचन्द्रः जिनः ।) . जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र के प्रथम तीथ कर ऋषभदेव तथा जम्बूद्वीप के ए रवत क्षेत्र के प्रथम तीर्थ कर बालचन्द्रानन, इसी भरत थोत्र के दूसरे तीर्थ कर अजितनाथ तथा जम्बूद्वीपस्थ ऐरवत क्षेत्र के द्वितीय तीर्थ कर सुचन्द - ३४७। भरहे य संभवजिणो, एरवए अग्गिसेण जिणचंदो । अभिनंदणो य भरहे, एरवए नंदिसेण जिणो ३४८। (भरते च संभव जिनः, ऐरवते अग्निषण जिनचन्द्रः । अभिनन्दनश्च भरते. ऐरवते नन्दिषण-जिनः ।)
जम्बूद्वीपस्थ भरत क्षेत्र के तोस रे तीर्थ कर संभवनाथ जम्बूद्वीपस्थ एरवत क्षेत्र के तीसरे तीर्थकर अग्नि मेन इसी भरत क्षेत्र के चौथे तीर्थकर अभिनन्दन, जम्बूद्वीपस्थ ऐरवत क्षेत्र के चौथे तोर्थंकर नंदिसेन-।३४८। मुमई य भरहवासे, इमिदिण्ण जिणो य एरवयवासे । भरहे य सुपास जिणो एरवए साम चंद जिणो ३४९। (सुमतिश्च भरतवर्षे, ऋषिदत्त जिनश्च ऐरवतवणे । भरते च सुपाव जिनः, ऐरवते श्यामचन्द्रः जिनः ।)
जम्बूद्वीपीय भरत क्षत्र के पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ, जम्बूद्वीपीय ए रवत क्षेत्र के पांचवें तीर्थंकर ऋषिदत्त, इसी भरत क्षेत्र