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तित्थोगाली पइन्नय ]
अजिय भरहवासे, सुयणु सुचंदो य एरवय वासे । एक समएण जाया, दस वि जिणा रोहिणी जोए | ३१४ | ( अजितः भारतवर्षे, सुतनुः सुचन्द्रश्च ऐरवतवर्षे । एक समयेन जाताः, दशाऽपि जिना: रोहिणी योगे ।)
भरत क्षेत्र में अजितनाथ और ऐरवत क्षेत्र में सुचन्द - इस प्रकार ये द्वितीय दशों तीर्थङ्कर भी चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में उत्पन्न हुए । ३१४ | भर य संभव जिणो, एग्वए अजियसेण जिणचंदो । एगसमएण जाया दसवि जिणिंदा पुणव्वसुणा । ३१५ । ( भरते च संभव जिनः, ऐरवते अजित सेनजिनचन्द्रः | एक समयेन जाताः, दशाऽपि जिनेन्द्राः पुनर्वसुना ।)
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भरत क्षेत्र में संभव जिन और ऐरवत क्षेत्र में अजितसेन - इस प्रकार दशों क्षेत्रों में दशों ही तीर्थंकर चन्द्र का पुनर्वसु नक्षत्र के साथ योग होने पर एक ही समय में हुए । ३१५ ।
समय
( भरत क्षेत्र में अभिनन्दन और ऐरवत क्षेत्र में नंदिसेण एक में उत्पन्न हुए--- इस अभिप्राय की गाथा लिपिकार के दोष से मूल प्रति में नहीं लिखी गई है ।)
सुमती
य भरहवासे, इसिदिण्ण जिणो य एरवय वासे । एग समण जाया, दसवि जिनिंदा महा जोगे | ३१६ | (सुमतिश्च भारतवर्षे, ऋषिद चजिनश्चैरवतवर्षे ।
एक समयेन जाताः दशाऽपि जिनेन्द्राः मघा योगे ।)
भरत क्षेत्र में सुमतिनाथ और ऐवत क्षेत्र में तीर्थ कर इसिदि ( ऋषिदत्त ) - - - ये दशों तीर्थ कर मघा नक्षत्र के योग में एक ही समय में उत्पन्न हुए । ३१६।
उपभो य भर, वयधारि जिणो य एरवयवासे ।
एग समएण जाया, दसवि जिणा चिच जोगम्मि | ३१७|