SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थोगाली पइन्नय] [ ६१ आणयकप्पा सुविहीं, सियलजिणमच्चुयाओ कप्पाओ। सुक्काउ वासपुज्ज, सहस्साराओ चुयं विमलम् ।३०८। (आनतकल्पात् सुविधि, शीतलजिनमच्युतात् कल्पात् । शुक्रात् वासुपूज्यं, सहस्रारात् च्युतं विमलम् ।) आनत कल्प से च्युत हुए सुविधिनाथ, अच्युत कल्प से च्युत हए शीतलनाथ. शुक्र कल्प से च्यूत हये वासुपूज्य और सहस्रार से च्युत हए विमलनाथ तीर्थङ्कर को मैं नमस्कार करता हूँ।३०८। अभिनंदणं च अजियं, विजयविमाणच्चुयं नमसामि । चंदप्पहं च सुमई, दोविच्चुया वेजयंताओ ।३०९। (अभिनंदनं च अजितं, विजयविमानच्युतं नमस्यामि । चन्द्रप्रभ च सुमति, द्वावपिच्युतौ वैजयंतात् ।) - विजय विमान से च्युत हुए तीर्थङ्कर अभिनन्दन और अजितनाथ को तथा वैजयन्त विमान से च्युत हुए भगवान् चन्द्रप्रभ और सुमतिनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।३०६। अरमल्लिं जयंताओ, नमि नेमि पराइया विमाणाउ । मुंणि सुव्वयं च पामं, पाणयकप्पाच्चुयं वंदे ।३१०। (अरं मल्लिं जयन्तात् , नमि नेमिं अपराजितात् विमानात् । मुनि सुव्रतं च पाय, प्राणतकल्पात् च्युतं वन्दे ।) जयन्त विमान से च्युत हुए भगवान् अरनाथ एवं मल्लिनाथ को, अपराजित विमान से च्युत हुए नमिनाथ एवं अरिष्टनेमि को और प्राणतकल्प से अवतरित हुए भगवान मुनिसुव्रत तथा पार्श्वनाथ को मैं वन्दन करता हूँ ।३१०। वयणघडेण एवं, भणेमि जिणवरा चउव्वीसं । चरिमभवे वोक्कते, एत्तो जम्म निसामेह ।३११। (वचनघटनया, भणामि जिनवरान् चतुर्विंशान् । चरम भवे व्युत्क्रांत, इतः जन्म निसामयता ।) जया
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy