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________________ ६० ] [तित्थोगाली पइन्नय (चत्वारि एकतः त्रीणि च ततः सप्त एकैकास्तु । पंचभिः ततः द्वौ च्युतान् , वन्दामि जिनान् चतुर्विशतीन् ।) चार एक ही स्थान से, तीन एक स्थान से, सात एक एक पृथक् स्थान से तथा पाँच स्थानों से दो दो की संख्या में च्युत हए इस प्रकार इन चौवीस तीर्थ करों को मैं वन्दन करता हूं ।३०४। उसमं च जिणवरिंद, धम्म संतिं तहेव कुंथुच । सव्वट्ठ विमाणाओ, चचारि चुए णमंसामि ।३०५। (ऋषभं च जिनवरेन्द्रम् , धर्म शान्तिं तथैव कुथु च । सर्वार्थ विमानात् , चत्वारि च्युतान् नमामि ।) सर्वार्थ सिद्ध विमान से च्यवित ऋषभदेव, धर्मनाथ, शान्तिनाथ और कुथुनाथ इन चार तीर्थङ्करों को मैं नमस्कार करता हूँ ॥३०॥ सेजसं च जिणिंद, अणतमपच्छिमं च तित्थयरं । पुप्फुत्तर विमाणाओ, तिन्निय चुया नमंसामि |३०६। . (श्रेयांसं च जिनेन्द्र अनन्तमपश्चिमं च तीथङ्करम् । पुष्पोत्चर विमानात् , त्रयश्च च्युतान् नमस्यामि ।) पुष्पोत्तर विमान से च्युत हुए श्रेयांसनाथ, अनन्त नाथ और अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर इन तीनों को मैं नमस्कार करता हूँ।३०७। हेट्ठिम गेवेज्जाओ संभवं, पउमप्पहं उवरिमायो। मज्झिम गेवेज्ज चुयं, वंदामि जिणं सुपासरिसिं ।३०।७ (अधस्थ ग्रेवेयकात् संभवं, पद्मप्रभ उपरिमात् । मध्यम वेयकच्युतं, वंदामि जिनं सुपार्श्वर्षिम् ।)...... __ अधो ग्रैवेयक से च्युत हुए सभवनाथ, उपरिम ग्रंवेयक से च्युत हुए पद्मप्रभु और मध्यम ग्रैवेयक से च्युत हुए सुपार्श्वनाथ तीर्थङ्कर को मैं नमस्कार करता हूँ।३०७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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