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[ तित्थोगाली पइन्नय
यौगलिकों द्वारा कुलकर नाभि के समक्षं राजा की मांग किये जाने पर उन्होंने कहा--" ऋषभ तुम्हारा राजा हो । " । २८३ । आभोउ सक्को, उवागओ तस्स कुणइ अभिसेयं । मउडाईं अलंकारं, नरिंदजोगं च से कुणइ | २८४ | (आभोगयितु ं शक्रः उपागतः तस्य करोति अभिषेकम् | मुकुटानि अलंकारं नरेन्द्र योग्यं च स करोति ।)
अवधिज्ञान के उपयोग द्वारा यह सब कुछ ज्ञात कर शक्र वहां उपस्थित हुआ । देवराज ने भगवान् ऋषभदेव को नरेन्द्रों के योग्य मुकुटादि सभी अलंकारों से विभूषित कर उनका राज्याभिषेक
किया | २८४|
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विशिनीपन्न हिंय ते उदगं घेत ं छुहंति पाए । साहु विणीया पुरिसा, विणीय नयरी अह निविडा | २८५ ॥ (विसन्नतां प्राप्ताः परे उदकं गृहित्वा भन्ति पादयोः । साधुः ! विनीताः पुरुषाः विनीता नगर्यथ निविष्टा ।)
यौगलिक पुरुष भगवान् ऋषभदेव के राज्याभिषेक के लिये विसिनी अर्थात् नलिनी पत्रों में पानी लेकर आये पर उन्हें वस्त्राभूषणों से अलंकृत देखकर केवल उनके चरण कमलों पर पानी डाल कर अपनी ओर से अभिषेक की प्रक्रिया को सम्पन्न किया । शक्र ने यह देखकर हर्षित हो साधुवाद देते हुए कहा बहुत सुन्दर ! ये बड़ विनीत पुरुष हैं। उनके विनय को देखकर इन्द्र ने नवनिर्मापित नगरी का नाम विनीता रखा । २८५ ।
आसा हत्थी गावो गहियाई रज्ज संगह निमित्तं ।
वित्तण एवमाई चउव्विहं सगहं कुणइ | २८६ |
( अश्वाः हस्ती गावः, गृहीतानि राज्य संग्रह निमित्तम् । गृहित्वा एवमादिनि, चतुर्विधं संग्रहं करोति ।)
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राजकीय संग्रह के निमित्त घोड़ों, हाथियों और गायों को पकड़ पकड़ कर एकत्र किया गया। इस तरह के एकत्रीकरण के पश्चात् चार प्रकार का संग्रह किया गया । २८६ ।