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________________ ८२ ] [ तित्थोगाली पइन्नय पढमो अकालमच्चू , तहिं चालफलेणं दारगा पहाओ । कण्णाउ कुलगरेहि, सिट्ठ गहिया पीणिव्वाउ ।२७७। (प्रथमो अकालमृत्युः, तत्र तालफलैः दारकाः प्रहताः । कन्यास्तु कुलकरैः श्रेष्ठाः गृहीताः परिणायतुम् ।) वहां (दशों क्षेत्रों में) सद्यःजात योगलिक शिशुओं में से नर शिशु की तालफल के गिरने से प्रथम अकाल मृत्यु हुई। कुलकरों ने यह कह कर कि यह श्रेष्ठ कन्या है, अपने पुत्रों के साथ उनका विवाह करने की इच्छा से उन कन्याओं को अपने यहां रख लिया ।२७७। भोगसमत्थे नाउ, वरकम्मे कासि तेसि देविंदा । दोण्हं वरमहिलाणं, बहुकम्मं कासि देवीउ ।२७८। (भोगसमर्थान् ज्ञात्वा, वरकर्माणि अकार्षन् तेषां देवेन्द्राः । द्वयोरपि वरमहिलयोः वधुकर्माणि अकार्षन् देव्यः।) (समय पर) उन जिनेश्वरों को भोगसमर्थ जान कर वर पक्ष की ओर से किये जाने वाले सब कार्य देवेन्द्रों ने तथा उन दो दो कन्याओं के कन्यापक्ष की ओर से किये जाने वाले सभी वधू-कर्म (देवेन्द्रों की) देवियों ने किये ।२७८। एवं दसवारेज्जा, दससु वि वासेसु होंति नायव्वा । दस वि जिणाणं एते, देवासुर परिवुडा वुत्तं ।२७९। (एवं दश वरेच्छा, दशष्वपि वर्षेषु भवन्ति ज्ञातव्याः। दशानामपि जिनानामेते, देवासुर परिवृता उक्ताः ।) इस प्रकार दशों ही क्षेत्रों में दश वरिच्छाएं होती हैं । दशों ही जिनों के देवासुरों से परिवेष्टित वृत्तान्त कहे गये हैं ।२७६। छ पुव्वसय सहस्सा, पुटिव जायस्स जिणवरिंदस्स । तो भरह बंभि सुंदरि, बाहुबलि चेव जायाई ।२८०।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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