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[ तित्थोगाली पइन्नय
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(नमित्वा जिनवरेन्द्रान् अक्षिप्रमाणात सुरवृन्दैः सहिताः । नन्दीश्वरवरमहिमां कृत्वा इन्द्राः गताः स्वर्गम् ।)
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जिनेन्द्रों को नमस्कार कर सुरवृन्दों सहित नन्दीश्वर द्वीप में जिनवरों की महिमा कर क्षण भर में ही इन्द्र अपने २ स्वर्गलोक को चले गये ।२७०/
इह पंडुरे पभामि, दसव ते कुलगरा निए पुते । पिच्छेति सह पियाहिं, हरिसवल्लसिय मुहकमला । २७१। (te पाण्डुरे प्रभाते, दशापि ते कुलकरा निजान् पुत्रान् । प्रक्षन्ति सहप्रियाभिः हर्षवशोल्लसित मुखकमला: 1 )
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इधर उषाकाल में हर्षातिरेक से प्रफुल्लित वदन दशों कुलकर अपने पुत्रों सहित अपनी प्रियाओं को देखते हैं । २७१।
अह वट्ट ति जिनिंदा, दियोगवुया अणोरमसरिया । देवी देव परिवुडा, दो दो नारीहिं ते सहिया | २७२। अथ वर्तन्ते जिनेन्द्राः, दिव्यलोकवृता अनुपम श्रीकाः । देवी- देव परिवृताः, द्वि द्वि नारीभ्यां ते सहिताः । )
तदनन्तर वे अनुपम शोभाशाली जिनेन्द्र दो दो परिरक्षिका महिलाओं के साथ दिव्य लोकों, देवियों एवं देवों से घिरे रहते हैं ।२७२।
असियसिरया सुनयणा, विबोद्धा धवलदंत पंचिया | वरपउमगब्भगोरा, फुल्लुप्पलगंधनीसासा | २७३ | ( असित शिरजाः सुनयनाः, विबुधाः धवलदन्तपंक्तिकाः । वरपद्मगर्भगौराः, फुल्लोत्पलगंध निःश्वासाः । )
काले भंवर बालों, सुन्दर नेत्रों, विशिष्ट बुद्धि और श्वेत दंत पंक्ति वाले वे सभी जिनेन्द्र श्रेष्ठ पद्म पुष्प के गर्भ के समान गौर वर्ण और प्रफुल्लित उत्पल की गन्ध के समान सुगन्धित श्वासोच्छ्वास् वाले हैं । २७३ ॥