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तित्योगालो पइन्नय ।
हर्ष विभोर हो देवों ने विचित्र वर्णों वाले अनेक प्रकार के चूर्गों, वस्त्रों और प्रचुर मात्रा में रत्नों की वर्षा की ।२६६। अह देइ बज्जपाणि, पराए भत्तीए जिणवरिंदाण । खोभे कुंडल जुयले, सिरिदामे चेव य सुरूवे ।२६७। (अथ ददाति वज्रपाणिः, परया भक्त्या जिनवरेन्द्र भ्यः । क्षोभानि कुण्डल युगलानि, श्रीदामानि चैव च सुरूपाणि ।)
तदनन्तर वज्रपाणि शक ने परा (उत्कृष्ट) भक्ति के साथ दशों ही जिनेश्वरों (प्रत्येक) को एक एक दिव्य कुण्डलों की जोडी और एक एक कभी न कुम्हलाने वालो अति सुन्दर श्रीदाम भेंट की।२६७। वत्थालंकार विहि, सव्यं जणणीण जिणवरिंदाणं । सक्कस्स देवरण्णो, अह देति वरग्गमहिसीओ ।२६८। (वस्त्रालंकारविधिं सर्वाः जननीभ्यः जिनवरेन्द्राणाम् । शक्रस्य देवराज्ञः, अथ ददति वराग्रमहिष्यः ।)
· देवराज शक की पटरानी देवियों ने सभी जिनेन्द्रों की माताओं को अनुक्रमशः (ण्डी से चोटी तक धारण करने योग्य) सभी प्रकार के दिव्य वस्त्र तथा अलंकार भेंट किये ।२६८। किच्चेसु बहुविहेसु य, जिणाण कायव्यएसु बहुएसु । संदिसिऊण सुरिंदा, दिसाकमारीण सव्वेसिं २६९। (कृत्येषु बहुविधेषु च, जिनानां कर्तव्येषु बहुकेषु । संदेशयित्वा सुरेन्द्राः, दिक्कुमारीन् सर्वान् ।) - जिनेन्द्रों के लिये बहुत से करने योग्य अनेक प्रकार के कार्यो के सम्बन्ध में सभी दिशाकुमारियों को निर्देश देकर सुरेन्द्र... २६६। नमिऊण जिणवरिंदे, अच्छिपमाणा सुरविंदेहिं सहिया । नंदीसरवरमहिमं, काउं इंदा गया सम्गं ।२७०।