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________________ ७४ ] तित्थोगाली पइन्नय तो देव दाणविंदा, स अच्छरा सपरिसा पहट्ठमणा । अभिसंधुणंति पयया, थुइ सय परिसंथुए वीरे ।२४८। (ततः देवदानवेन्द्राः सारसयः सपरिषदाः प्रहृष्टमनाः । अभिसंस्तुवन्ति प्रयताः, स्तुतिशत परिसंस्तुतान् वीरान् ।) तत्पश्चात अप्सरामों एव अपनी परिषद् सहित देवेन्द्र और दानवेन्द्र हर्ष विभोर हो सैकड़ों स्तुतियों से अभिसंस्तुत उन वीर शिरोमणि दशों तीर्थंकरों की यत्नपूर्वक स्तुति करते हैं ।२४८। तुम्ह नमो पायाणं, चक्कंकुसलक्खणंकियतलाणं । जम्मखएइट्ठियाण, अणेय तणु तप्पणक्खाणं ।२४९। (युष्मभ्यं नमो पद्भ्यः, चक्रांकुशलक्षणांकिततलेभ्यः । जन्मक्षये स्थितेभ्यः, अनेकतनुतर्पणाक्षेभ्यः ।) चक्र एवं अंकुश के लांछनों से सुशोभित तलवों वाले, जन्ममृत्यु के समूलनाश हेतु आगे बढ़े हुए तथा अनेक प्राणियों के शरीर और नेत्रों को तृप्त करने वाले आपके चरण कमलों को बारम्बार नमस्कार है ।२४६। कम्मरयं अट्ठविहं न सिंति फुडं भव्याण जीवाणं । तेण सरणं पवन्ना, जिणाण पाए सिवुप्पाए ।२५०। (कर्मरज अष्टविधं, नाशयन्ति स्फुटं भव्यजीवानाम् । तेन शरणं प्रपन्नाः, जिनानां पादान् शिवोत्पादकान् ।) भव्य जीवों की आठ प्रकार की कर्मरज को आपके पद पंकज विनष्ट करते हैं। इसीलिये हम शिवसुख प्रदायक जिनेश्वरों के चरणकमलों की शरण में आये हैं ।२५०। धण्णा जिण जणणीओ, सिद्धगइ पहदेसगा जिणा जाहिं । उदरेणं जिणवसभा, धम्मधुराधारगा ढविया ।२५१। (धन्याः जिनजनन्यः, सिद्धगतिपथदर्शकाः जिना याभिः । उदरेण जिनवृषभाः, धर्मधुराधारकाः स्थापिताः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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