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यह ग्रंथ प्रेस में छपना प्रारम्भ हो गया था उसके पश्चात् स्वनामधन्य स्व० श्राचार्य श्री राजेन्द्रसूरीजी महाराज के माहोर नगर स्थित ज्ञान भण्डार से इस ग्रंथ की एक प्रति प्राचीन प्रति मिली । प्राहोर भण्डार के व्यवस्थापकों के सौजन्य से श्री राठौड़ को उस प्रति की फोटोस्टेट कापी करवाने की सुविधा मिली और उस फोटो कापी की सहायता से इस ग्रन्थ के कतिपय पाठों को शुद्ध स्वरूप प्रदान करने में बड़ी सुविधा हुई । इसके लिए हम प्रभिधान राजेन्द्र नामक विशाल ग्रंथराज के रचनाकार स्व० श्री राजेन्द्रसूरी जी के प्राहोर स्थित ग्र ंथागार के व्यवस्थापकों के प्रति भी प्राभार प्रकट करते हैं ।
हमारी यह प्रांतरिक उत्कट अभिलाषा थी कि इस ग्रंथ को प्रकाश में लाने वाले पंन्यासप्रवर श्री कल्याणविजयजी महाराज साहब के कर-कमलों में इस ग्रंथ की मुद्रित प्रति शीघ्रातिशीघ्र समर्पित करें पर कराल काल ने हमारी सब प्राशानों-प्रभिलाषात्रों को कठोर वज्राघात कर कुचल डाला । केवल जैन जगत् ही नहीं, प्रपितु इतिहास क्षितिज के प्रकाशमान प्रचण्ड मार्तण्ड पन्यामप्रवर श्री कल्याण विजयजी महाराज इहलीला समाप्त कर स्वर्गस्थ हो गये । हमें केवल इतना ही संतोष है कि इस ग्रन्थ के कतिपय मुद्रित फार्म उनके कर-कमलों में उनके स्वर्गस्थ होने से एक मास पूर्व पहुंच गये थे श्रीर उन्होंने इस ग्रन्थ के फार्म देखकर प्रान्तरिक सन्तोष प्रभिव्यक्त किया था ।
हम अर्चना प्रकाशन, अजमेर के अधिष्ठाता और कर्मचारी वर्ग के प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं कि उन्होंने इस ग्रन्थ के प्राकृत मूल पाठ, संस्कृत छाया को भी यथाशक्ति शुद्ध रूप में मुद्रित करने में पूर्ण परिश्रम किया ।
सदस्यगण,
श्री श्वेताम्बर जैन ( चार थुई) संघ, जालौर
एवं
श्री श्वेताम्बर जैन ( चार बुई) संघ तखतगढ़ । जिला पाली
स्व. श्री जोइतमलजी बालगोता के सुपुत्र :— सर्व श्री अचलचन्दजी प्रौर मांगीलालजी ललितकुमारजी और महेन्द्रकुमारजी प्रोठवाड़ा जिला जालोर