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पंन्यास प्रवर श्री कल्याणविजय जी महाराज साहब
का जीवन परिचय
मेरे परम श्राराध्य गुरुदेव पंन्यास श्री कल्याण विजय जी महाराज साहब जैन जगत् के महान् प्रभावक सन्त हुए हैं। उन्होंने जिन शासन की उन्नति और समाज के नैतिक एवं धार्मिक धरातल के उत्कर्ष के लिए अपने
६८ वर्ष के उत्कट साधनापूर्ण श्रमण जीवन में जो महान कार्य किये हैं, वे जैन धर्म के इतिहास में सदा सर्वदा स्वर्णाक्षरों में लिखे जाते रहेंगे । "वीर निर्वारण संवत् और जैनकाल गणना" नामक ग्रन्थ लिखकर इस महासन्त ने भारतीय इतिहासविदों ही नहीं अपितु पाश्चात्य विद्वान् इतिहासज्ञों में भी विपुल - यश मूर्धन्य स्थान प्राप्त किया है। जैनागमों, नियुक्तियों, चूणियों, टीकानों, भाष्यों एवं इतिहास ग्रन्थों का बड़ा ही गहन प्रौर सूक्ष्म अध्ययन कर आपने विविध विषयों पर अधिकारिक विद्वत्ता प्राप्त कर ली थीं। ज्योतिषशास्त्र स्थापत्य और मूर्तिकला के तो वे विशिष्ट विद्वान् माने जाते थे । जैन इतिहास के सम्बन्ध में ग्रन्थों, शोधपूर्ण लेखों, पट्टावलियों श्रादि के माध्यम से प्रापने प्रमाण पुरस्सर जो नवीन खोजपूर्ण तथ्य रखे, उनसे प्रभावित हो भनेक इतिहासविदों ने उन्हें समय-समय पर " इतिहास मार्तण्ड" के सम्मानपूर्ण सम्बोधन से सम्बोधित किया है ।
जैन साहित्य और इतिहास के सम्बन्ध में शोध हेतु एक विद्वान् श्रद्धेय पंन्यास प्रवर की सेवा में प्राये । उन्होंने प्रापके बहुमुखी प्रतिभापूर्ण पांडित्य, आपके द्वारा रजिस्टरों पुस्तकों एवं डायरियों में विविध विषयों के विभिन्न ग्रन्थों पर निरन्तर श्रद्ध शताब्दी से लिखे जाते रहे खोजपूर्ण नोट्स प्रापके द्वारा सैंकड़ों बड़ी-बड़ी कापियों में लिखवाकर सुरक्षित किये गये, जैन परंपरा के सैंकड़ों मूल्य हस्तलिखित ग्रन्थों, धापके द्वारा संग्रहीत हस्तलिखित शास्त्रों एवं पुस्तकों के भण्डार, श्री कल्याण शास्त्र समिति संग्रह (भंडार) (इनकी कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ प्रहमदाबाद में शा किस्तुरभाई लालभाई लाइब्र ेरी में संग्रह की गई हैं) मोर प्रति समृद्ध एवं विशाल श्री केसर विजय जैन