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महादेवस्तोत्रम् जाता है। क्योंकि वस्तुतःकर्म के नाशसे ही जगत्-भवका नाश होता है। इसलिये सम्यक्त्व ही तात्त्विक रूपसे शिव है-यह आशय है ।) इन तीनों गुणोंसे युक्त अर्हत् - तीर्थकर हैं। इसलिये वेही एकमूर्ति तीन - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वररूप - भाग हैं। अर्थात् तीर्थकर एकमूर्ति हैं, एवं उनके केवल दर्शन, ज्ञान तथा चारित्ररूपी तीन पर्याय ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वररूप भाग हैंऐसा तात्पर्य है ।। ३३ ॥ क्षितिजलपवनहुताशनयजमानाऽऽकाशसोमसूर्याख्याः । इत्येतेऽष्टौ भगवति गीता वीतरागे सुगुणाः ॥ ३४ ॥
पदार्थ-क्षितिजलपवनहुताशनयजमानाऽऽकाशसोमसूर्याख्याः क्षिति - पृथिवी, जल, पवन, हुताशन-अमि, यजमान - व्रती, आकाश, सोम - चन्द्र तथा सूर्य आख्या - नामवाले, इति एते ये सभी, अष्टौ-आठ, सुगुणाः उत्तमगुण, भगवति भगवान् , वीतरागे वीतरागमें, गीताः वर्णित हैं ॥ ३४ ॥
भावार्थ-(पुराणों में परतीर्थिक महादेवकी पृथिवी आदि आठ मूर्तियां कही गयी हैं। किन्तु एकमूर्ति अष्टमूर्ति नहीं हो सकते - बह बात पूर्वमें एकमूर्तिके तीनमूर्ति नहीं होनेमें कही गयी युक्तियोंसे ही स्पष्ट है। किन्तु) वीतरागके क्षिति, जल, पवन, हुताशन, यजमान, आकाश, सोम तथा सूर्य - ये आठ उत्तमगुण कहे गये हैं। (इसलिये वीतराग ही अष्टगुणमय होने के कारण अष्टमूर्ति हैं - यह भाव है) ।। ३४ ॥