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________________ कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् पदार्थ-ज्ञानम्-केवलज्ञान, सदासर्वदा, विष्णुः विष्णु, प्रोक्तम् कहा गया है, चारित्रम्-चारित्र - सर्व सवाद्यविरति - संयम, ब्रह्मा ब्रह्मा, उच्यते-कहा जाता है, तु तथा, सम्यक्त्वम् - सम्यक्त्व - सम्यग्दर्शन - जिनोक्ततत्त्वोंमें श्रद्धा, शिवः शिव - महेश्वर, प्रोक्तम् कहा गया है। इसलिये, अर्हन्मूर्तिः तीर्थङ्करकी मूर्तितीर्थङ्कर, त्रयात्मिका तीनों - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वरस्वरूप हैं ॥ ३३ ॥ ___ भावार्थ -(उपर्युक्त विवेचनसे यह सिद्ध हो चुका है कि परतीथिकों के महादेवके विषयमें 'एकमूर्ति तीन भाग' वाली बात घटित नहीं होती। तथा पूर्वमें यह भी कहा जा चुका है कि अर्हत् ही ज्ञान, चारित्र तथा दर्शनके द्वारा ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर खरूप हैं। उसका स्पष्टीकरण करते हुए कहते हैं कि-) केवलज्ञान सदा ही विष्णु कहा गया है। (पुराणों में पालक तथा व्यापक देवको विष्णु कहा गया है। केवलज्ञान कर्मशत्रुका नाशकरके उससे रक्षण करता है, तथा सर्वद्रव्यपर्यायविषयक होनेसे व्यापकभी है, इसलिये पारमार्थिक रूपसे केवलज्ञान ही विष्णु है -- यह भाव है।) चारित्र सदा ब्रह्मा कहा जाता है। (पुराणों में जगत् के सर्जन करनेवालेको ब्रह्मा कहा गया है । चारित्रभी सिद्धिरूपी -सृष्टिका करनेवाला - सिद्धिप्रद है, इसलिये व स्तविक रूपसे चारित्रहीं ब्रह्मा है-यह अभिप्राय है ।) तथा सम्यक्त्त्वको शिव कहा गया है। (पुराणों में जगतके संहार करनेवालेको शिव-महेश्वरः कहा गया है । · सम्यक्त्त्वभी कर्मों के क्षयोपशमका हेतु होनेसे शिव कहा
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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