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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
अपने आप भूत प्राप्त हैं, सः = वह देवहीं, स्वयम्भूः = स्वयम्भू, उच्यते = कहे जाते हैं ॥ १४ ॥
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भवार्थ - जिस देवके लोकालोकके परिच्छेद करनेवाला - तीनों कालमें सर्वद्रव्यपर्यायका ग्रहण करनेवाला - केवल- ज्ञान गुरु आदिके उपदेशके बिना हीं जन्म से हीं ज्ञानत्रय युक्त होनेके कारण चारित्रपालनसे कर्मों के नाश हो जानेसे अपने आप प्रगट हो गया है । तथा जिस देव चारित्र एवं आत्मबल क्षायिक होनेसे अनन्त हैं, अथवा जिस देवके लोकालोकप्रकाशकज्ञान तथा अनन्तवीर्य एवं चारित्र स्वयंभूत = कर्मोंके सर्वथा क्षय हो जानेसे ( बादलों के हट जानेसे सूर्यके जैसे ) अपने आप प्रगट हो गये हैं, वह देवहीं स्वयम्भू कहे जाते हैं । (ऐसे स्वयंभूत - ज्ञान, वीर्य तथा चारित्रवाले जिनेश्वर हीं हैं, दूसरे देव नहीं । इसलिये जिनेश्वर हीं एकमात्र परमार्थ रूप से स्वयंभू हैं, दूसरे तो नामधारी हीं हैं - यह भाव है ) ॥ १४ ॥
शिवो यस्माज्जिनः प्रोक्तः शङ्करच प्रकीर्तितः । कायोत्सर्गी च पर्यङ्की स्त्रीशस्त्रादिविवर्जितः ॥ १५॥
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भावार्थ – यस्मात् = चूंकि, जिनः = जिनेश्वरदेव ऋषभनाथ - आदि तीर्थङ्कर, कायोत्सर्गी = कायोत्सर्ग मुद्रा के धारण करनेवाले, च = तथा, पर्यङ्की = पर्यङ्कासनके धारण करनेवाले, एवं, स्त्रीशस्त्रादि- . विवर्जितः = स्त्री, शस्त्र आदिसे रहित हैं -- स्त्री शस्त्र आदिका त्याग कर दिये हैं, इसलिये वे, शिवः = शिव, प्रोक्तः = कहे गये हैं, च =