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________________ १४ महादेवस्तोत्रम् =शील-चारित्र महान्-असाधारण एवं सर्वोत्तम हैं, महागुण:-गुणसम्यग्दर्शन, ज्ञान आदिगुण महान्-असाधारण एवं अलौकिक हैं, तथा, महामञ्जुक्षमा जिनकी क्षमा-अपराधकी सहनशीलता महान्प्रशंसनीय सर्वाधिक अत एव मंजु-मनोहर है, सा-वह देव, महादेव =महादेव, उच्यते-कहे जाते हैं ॥ १३ ॥ ___ भावार्थ-जिस देवके आत्मबल एवं उत्साह क्षायिक होनेके कारण अनन्त हैं, सन्तोष कभी अल्प नहीं होने के कारण स्थिर एवं सर्वाधिक हैं, चारित्र असाधारण, अलौकिक एवं सर्वोत्कृष्ट हैं, सम्यग्दर्शनआदि गुण अप्रतिपाती एवं अनन्त हैं, क्षमा प्रशंसनीय एवं असाधारण हैं, वह देवहीं महादेव कहे जाते हैं। . (अन्यतीर्थिक देवों के ये गुण नहीं हैं। क्योंकि वे रागद्वेष . आदिसे अभिभूत हैं। इसलिये वे महादेव नहीं कहे जा सकते । किन्तु जिनेश्वर ही उक्त गुणोंसे शोभित होनेके कारण महादेव हैं - यह अभिप्राय है) ॥ १३ ॥ स्वयम्भूतं यतो ज्ञानं लोकालोकप्रकाशकम् । अनन्तवीर्यचारित्रं स्वयम्भूः सोऽभिधीयते ॥ १४ ॥ पदार्थ-यत: जिस देवके, लोकालोकप्रकाशकम् लोक तथा अलोक दोनोंका प्रकाशक-जाननेवाला, ज्ञानम् केवलज्ञान, स्वयम्भूतम् स्वयं-गुरुके उपदेशके विना ही अपने आप भूत-प्रगट हुआ है, तथा जिस देवके, अनन्तवीर्यचारित्रम् चारित्र तथा वीर्य अनन्त हैं, अथवा स्वयम्भूतं-स्वयं-किसी देव आदिकी कृपा आदिके विना ही
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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