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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
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है, तथा, सर्वभूताऽभयप्रदम् सभी प्राणियोंके अभय देनेवाला है। तथा, मङ्गल्यम् च, कल्याणकारक है, तथा, प्रशस्तम् च प्रशंसनीय तथा इष्ट है। तेन उक्त गुणों के कारण (वह देव) शिवः शिवशुभप्रद, विभाव्यते-कहे तथा माने जाते हैं ॥ १ ॥
भावार्थ-जिस देवका सिद्धान्त मुक्तिका प्रतिपादन करनेके कारण शान्तिकी राह बताता है, इसलिये प्रशान्त है । तथा अहिंसा आदिके उपदेशके द्वारा सभी प्राणियों के अभय देनेवाला, शुभमार्गके उपदेश देनेके कारण कल्याणकारक है, इसलिये वह दर्शन प्रशंसनीय तथा इष्ट है । वह देव शिव शब्दसे कहे जाते हैं, तथा शिव समझे जाते हैं। (अन्यतीर्थिकों के प्रसिद्ध शिवका दर्शन-सिद्धान्त हिंसा आदिसे होनेवाले यज्ञ आदिका प्रतिपादन करने के कारण अशान्त, भयप्रद एवं अशुभानुबन्धी है, इसलिये अमंगल तथा निन्दनीय है । अतः वह देव शब्दमात्रसे शिव हैं, अर्थसे नहींऐसा अभिप्राय है ॥ १॥
महत्त्वादीश्वरत्वाच्च यो महेश्वरतां गतः । रागद्वेषविनिर्मुक्तं वन्देऽहं तं महेश्वरम् ॥ २॥
पदार्थ-य: जिस देवने, महत्त्वात् महिमासे, च=तथा, ईश्वरत्वात् ऐश्वर्यसे, महेश्वरताम् = महेश्वरपन-बड़प्पन, गत:= प्राप्त किये हैं, रागद्वेषविनिर्मुक्तम् राग तथा द्वेषसे विनिर्मुक्त-रहित= वीतराग ऐसे, तम्-उस, महेश्वरम् महेश्वर कहे जानेवाले देवकी,