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________________ महादेवस्तोत्रम् व्यञ्जक, जो उग्र तथा उद्वेगजनक नहीं हो ऐसा, तथा, सर्वभूताऽभयप्रदम् सभी प्राणियों के अभय देनेवाला, जो किसीके लिये भी भयकारक नहीं हो ऐसा, तथा, मङ्गल्यम् मङ्गलकारक एवं मंगलस्वरूप, एवं, प्रशस्तम्=शुभ, प्रशंसनीय तथा इष्ट है, तेन-दर्शनका प्रशान्त आदि होने के कारण, शिव: शुभ, शिव ऐसे, विभाव्यतेसमझे जाते हैं, कहे जाते हैं ।। १ ॥ ' भावार्थ-जिस देवका देखाव शान्त है तथा भयकारक नहीं है, तथा मंगलकारक एवं प्रशंसनीय है । अथवा जिस देवके देखनेसे शान्ति मिलती है तथा भय नहीं होता, तथा मंगल होता है, इसलिये जिस देवका देखना शुभ तथा इष्ट है। अतः वह देव शिव कहे तथा समझे जाते हैं। (जिस देवका देखाव अस्वाभाविक-अनेक नेत्र, मुख आदिसे तथा क्रोध आदिसे एवं शस्त्र आदिसे युक्त होनेके कारण उग्र एवं भयप्रद तथा नग्न एवं मुण्डमाला आदिसे युक्त होनेके कारण अमंगल एवं निन्दनीय है। अथवा उग्र एवं विकृत अंग तथा शस्त्रादिसे युक्त होनेके कारण जिस देवके देखनेसे क्षोभ, भय एवं अमंगल होते हैं, इसलिये जिसका देखना अनिष्ट है। वह देव शिव नहीं कहे जा सकते । क्योंकि शिवशब्दका अर्थ शुभ तथा शुभकारक-ऐसा ही होता है । इसलिये अन्यतीर्थिकोंके शिव, जो विकृत अंगवाले, क्रोधी, दिगम्बर एवं शस्त्रादिसहित कहे गये हैं, वह शब्दमात्रसे ही शिव हैं, अर्थसे नहीं-ऐसा अभिप्राय है ) ॥१॥ प्रस्तुत श्लोकका दूसरा अर्थभी हो सकता है । जैसे-यस्य= जिस देवसे प्रतिपादित, दर्शनम् दर्शन-सिद्धान्त, प्रशान्तम् शान्त
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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