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________________ कीर्तिकला हिन्दी भाषा ऽनुवादसहितम् प्रिय है तथा मुक्त है, वही स्तुतिपात्र है - ऐसा अभिप्राय है ) ॥ २१ ॥ २१ जगन्महामोहनिद्राप्रत्यूषसमयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य देशनावचनं स्तुमः || २२ | पदार्थ - जगन्महामोहनिद्राप्रत्यूषसमयोपमम् = जगत् संसार, सभी प्राणी, महामोह - महान् अज्ञान, निद्रा - नींद, प्रत्यूष - उषाकालप्रभात, समय, उपमा - तुल्य, संसार के सभी प्रणियोंकी महान् अज्ञानरूपी नींद के तोड़ने में उषाकालके समान, मुनिसुव्रतनाथस्य = जिनेश्वर श्रीमुनिसुव्रतनाथकी, देशनावचनम् = उपदेशवाणीकी, स्तुमः = स्तुति करते हैं ॥ २२ ॥ भावार्थ - (जैसे प्रातः कालमें सभीकी नींद टूट जाती है, या प्रातः काल सभी की नींद तोड़नेवाला है, वैसेहीं जिनेश्वर अपनी उपदेश वाणियोंके द्वारा सभी प्राणियोंके महान् अज्ञानका नाशकर देते हैं । इसलिये - ) संसार के सभी प्राणियों के महान् अज्ञानरूपी नींदके तोड़ने में प्रातः काल समान, श्रीमुनिसुव्रतनाथकी देशनावाणीकी स्तुति करते हैं । ( यहां ज्ञानप्रद वागी हीं प्रशंसनीय है, अतः उसके बक्ता महान आत्मा हैं - यह ध्वनि है ) ॥ २२ ॥ लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि निर्मलीकारकारणम् । वारिप्लवा इव नमेः पान्तु पादनांऽशवः ॥ २३ ॥ पदार्थ – नमताम् = प्रणाम करनेवालों के, मूर्ध्नि - मस्तक पर, उठन्तः = फैलती हुई, वारिप्लवाः = वारि जल, प्लव प्रवाह धारा,.
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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