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ऐक्यता और फूट. . (१५१) से चला गया। (८) फजुल खर्चेने हमपर इतना हमला किया है कि उस घाटे के मारे हम ऊंचे नहीं आ सक्ते हैं इत्यादि हानि के दर्वाजे हमारे वास्ते सदैव खुले हैं तब ही तो चालीस क्रोड की तादाद आज बारह लाख में आ रही है भविष्य के लिए न जाने जैन समाज के भाग्य में क्या लिखा हुमा है क्या हमारे समाज अग्रेसर इस हानि को देख थोडा बहुत प्रयत्न कर इस भयंकर घाटे से समाज को बचा लेंगे।
(१५) जैन समाज की एकता और फूट
एक समय वह था कि जैन समाजका प्रेम स्नेह एकता संसारभर में मशहूर था अन्य लोग भी उसका अनुकरण किया करते थे इसी एकता के जरिए जैन समाज तन मन और धनसे . समृद्धशाली थी पर जबसे हमारे एकता की श्रृंखलना छिन्नभिन्न हो
गई और फटने अपना पग पसार किया क्रमशः उस फूटके सन प्रचण्ड प्रभावसे हमारे घरमें, वास में, गांव में, नगर में, जाति न्याति में, पंच पंचायतीमें, संघ में, साधु साधियों में प्राचार्य पन्यासों में कान्फ्रेन्समें, सभा महासभामें, मण्डलमें, लायब्रेरी में, स्कूल में, मन्दिर उपाश्रयों में, बाप बेटेमें पति पत्नीमें इत्यादि जहां देखो वहां फूट ही फूट दिखाई दे रही है फिर हमारी समाज का अधःपतन क्यों न हो ? क्या कोई ऐसा महा पुरुष समाज में है कि इस भयंकर फूट रूपी भट्ठी से समाज को बचा सके ?