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________________ (१५९) जन जाति महोदय प्रकरण कळा. (१६) जैनसमाज का विद्यापर प्रेम - एक जमाना वह था कि जैन समाज विद्या का ठेकेदार था और संसारभर का लिखना पढना हिसाब किताब उनके ही हाथ में समझा जाताथा. इसी विद्याके जरिए जैन समाज को पब्लिक तो क्या पर राजा महाराजा आदर की दृष्टीसे देखते थे . भाज जैन संसार पुराणे ढांचे में ही अपना गौरव मान बैठा है एक तरफ विश्वमें विद्या की बड़ी भारी धामधूम मच रही है छोटी बड़ी जातियोंने गहरा लाभ उठाया और उठाती जा रही है तब हमारी समाज का विद्याकी और कितना दुर्लक्ष है ? धनाढय लोग अपना द्रव्य किस और पाणी की तरह बहा रहे हैं उनके बाल बचोंको वे कैसा विद्याभ्यास करवाते हैं जिसमें भी मारवाद जैसे प्रदेश के लिए तो पूछना ही क्या ? जिस समाज का जीवन निर्वाह ही विद्यापर है उस समाजमें नतो कोई (University) युनिवरसीटी है न कोई कोलेज है कि जहां पर उब पढाई वा शिक्षा प्राप्त कर सके। केवल बंबई में विद्याका साधनरूप महावीर जैन विद्यालय नामक एक संस्था है पर उसके पैर उखाड़ने का कितना प्रबल हो रहा है भब रही बोटी बड़ी संस्थाएं जिनके हाल भी बड़े शोचनिय है कारण उपदेशको के झंडेली उपदेश के लिहाजसे कई संस्थाएं स्थापन हो जाती है चन्दा भी हो जाता है पर यह दो चार मास या एक दो साल के अन्दर अपना जीवन समास करदेती है अगर पैसेके जौरसे चले तो उनकी देखरेख करनेवाला
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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