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( १५० ) जैन जाति महोदय प्रकरण छठा. सहायता दे रहे हैं इतना ही नहीं पर द्रव्य सहायता से अपनी समाज की वृद्धि कर रहे हैं कि लाखों क्रोडो भादमियों को अपने धर्म में मिला लिए हैं तब हमारी समाज की वह दशा है कि अपनी उदरपूर्ति के लिए अन्य धर्मियों का सरणा लेना पड़े, इतना ही नहीं बल्कि धर्म से भी हाथ धो बैठने का समय आ पहुंचा है धर्म के नामपर हजारों लाखों रूपैये खर्चनेवाले धनाज्य वीर जरा इस तरफ भी लक्ष देंगे ?
(१४) जैन समाज की वृद्धि हानि
जैन जातियों की जन्म तिथी से लगा कर विक्रम की सोलहवीं शताब्दी तक तो जैन संस्था में वृद्धि हानि दोनों प्रकार से होती आई थी पर बाद तो वृद्धि का दर्वाजा बिल्कुल बंध हो गया यहांतक कि अगर कोई मनुष्य जैन धर्म स्वीकार करले तो भी उस के साथ जाति व्यवहार नहीं किया जाता हैं और आज भी वह दर्वाजा बंध है दूसरी तरफ हानि का दर्वाजा हमेशां के लिए खुल्ला है जैसे कि ( १ ) जन्म की अपेक्षा मृत्यु ज्यादा होती है (२) शरीर स्वास्थ्य के अभाव बाल मृत्यु सब से अधिक होती है (३) दिन प्रति दिन विधवाओं की संख्या बढना और उन का मृत्यु होना ( ४ ) कन्याविक्रय के कारण बहुत से सुयोग्य वर कुंवारे रह जाते हैं ( ५ ) रंड़वे पुरुषों की मृत्यु (६) इसाई आर्यसमाजी हरफ लेते हैं। ( . ) गज तंत्र और व्यापार हमारे हाथों