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( १४८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. वे तमाम उम्मर भर वीर कहलाते हुए अपने तन, धन, धर्म, तीर्थों का रक्षण स्वयं बडी वीरता से कर सकेंगे । क्या हमारे समाज नेता अपनी कायरता के कलङ्क को दूर करने के लिए इस तरफ जरासा भी लक्ष देंगे ?
-*HDK(१२) जैन समाज का दयातत्त्व
अन्योन्य मतावलम्बियों की अपेक्षा जैन शास्त्रकारोंने अहिंसा भगवती को इतना तो उच्चासन दिया है कि जिसका आदर्श तत्त्व और विशाल व्याख्या से विश्व मोहित हो रहा है आज हमारी जैन समाज अपनी संकीर्णता को लेकर उस विशाल महिंसा का अर्थ इतना तो संकुचित कर दिया है कि बनस्पति और बायकाय की दया पालन में जितना उन का प्रेम है उतना मनुष्य दया के लिए नहीं दिखाई देता है आज गायों बकरों और कबुतरों के लिए जितनी संस्थाओं खोल उन के लिए जो द्रव्य व्यय किया जाता है कि उतनी हमारे दुःखी स्वधर्मियों के लिए उदारता नहीं है पशुओं के लिए हमारी समाज में अनेक संस्थाओं हैं पर धर्म से पतित होनेवाले स्वधर्मी भाइयों के लिए एक भी ऐसी संस्था नहीं है कि जिस के अन्दर हमारे पांच पचीस भाई धंधा रूजगार कर अपना गुजारा कर सके यह कितना अफसोस!! घनान्य लोग तो अपने धनमद में ही चकचूर हो कर मोज सोख के अन्दर आनन्द की