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________________ संगान. (१४५) केश विषवाद को समझाने के लिए कितनी ही नाम्बरी प्राप्त की हो पर जहां तक अपने घर के कलह दावानल को शान्त करने की उनमें योग्यता नहीं है या वे पर्वाह नहीं रखते हो तो उन की समझदारी की कितनी किम्मत हो सकती है ? अगर हमारे समाज के नेता और धनान्य वर्ग " अपना सो सञ्चा" इस अभिमान को तिलाखली देकर " सच्चा सो अपना" इस नीति का अवलम्बन करें तो वितराग धर्मोपासक लिखी पढी कौम का उद्धार करना कोई बड़ी मुशिबत का काम नहीं है; पर हमारे प्राचार्यदेव मुनिवर्ग और संघनायकों की ऐसी उदार भावना कब होगी और हम समाजोन्नति कब देखेंगे ? ___सज्जनों ! पत्ते (गंजीफा) खेलना तो बहुत ही बुग है, परन्तु पत्तों का खेल हम को कैसा अपूर्व उपदेश दे रहा है ? एकता के प्रभाव का स्वरूप उस निर्जीव वस्तुने अपने को किस कदर समझाया है कि दो तीन चार यावत् दस तक के पत्तों को 'गुलाम' सर कर लेता है पर गणी साहिबा के आगमन के साथ ही गुलाम को भागना पड़ता है और जब तक बादशाह की सवारी तसरीफ नहीं लाती है वहां तक रानी अपना स्वामित्व जमाए रखती है। जब बादशाह की दृष्टि पड़ती है तो गणी साहिबा फौरन परदे में जा घुस जाती है। बादशाह राजराजेश्वर होता है वह अपने राज्य को अच्छा या बुरा किसी भी तरह चलाने में स्वाधिन है, पर एक पत्ता ऐसा है कि बादशाह के मजबुत सिंहासन को भी एक 'हुंकार' में डिगमिगा देता है । वह कौनसा पत्ता है ? “ एक्का" अर्थात् संगठुन ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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