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न्याति जातिौर संघ. समझते थे, वे तो आज कुसम्प का मुंह कालाकर आपसमें प्रेम-स्नेह ऐक्यता और संगठनमें कटीबद्ध हो रही है, जब हम महाजन लिखे पढे बड़े समजदार ज्ञानी और दुनियाभर की प्रकल के ठेकेदार होनेपर भी हमारे गृहमें, प्राममें, देश, न्याति जातिमें, प्राचार्यादि पद्वी धारियोंमें साधु साध्वियोंमें, संघमें, धर्ममें, गच्छमें, मतमें, और क्रियाकापडमें अर्थात् जहां देखा जाय वहाँ फूट और कुसम्प का साम्राज्य छा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ हो कि इतर जातियों का . निकला हुआ कुसम्प, प्रज्ञान मूर्खता तो हमने खरीद ली हो और हमारा निकला हुआ प्रेम ऐक्यता संगठुन आदि सद्विचारों को उन लोगोंने अपनी समाजमें स्थान दे दिया हो !
एक समय वह था कि हमारे पूर्वजोंने अपनी संगठुन शक्तीद्वारा समाज के तन धन और मनमें दिन व दिन वृद्धिकर उस को उन्नति के उच्च शिखरपर पहुंचा दी थी । आज उसी संगठन बलद्वारा हमारे इसाई, मुसलमान, पारसी, और आर्यसमाजी लोग हमारे सामने पूर्व की तरफ बड़ी तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं। उनकी एकता की तरफ देखिए कि वे किसी जाति व किसी देश का क्यों न हो पर उस को विना मेदभाव के अपनी समाजमें स्थान देकर किसी भी मनुष्य को एकत्र कर लेते हैं। और वे अपने धर्म के लिए प्यारे प्राण देने में तनीक भी नहीं चूकते हैं और अपने सहयोगियों को तन, मन, और धन से सहायता देने को हरसमय तैयार रहते हैं इत्यादि । जो कि पूर्वजमाने में हमारे पूर्वजों का यह एक ग्वास