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________________ (१४२) जैन जाति महोदय प्रकरण कहा. है। हमारे पवित्र धर्म और तीर्थस्थानों का रक्षण हम हमारी संगठुन शक्ती द्वारा किया करते थे, उस समय किसी की ताकत नहीं थी कि वह हमारे सामने आंख उठाकर देख सके; पर भाज हमारी संघ शक्ती के टुकड़े २ हो जानेसे हमारे धर्म और तीर्थों का पग २ पर अपमान, आशातना और उन पवित्र स्थानोंपर अयोग्य अमानुषी हुमले हो रहे हैं और हम टकटकी नजर लगाकर देख रहे हैं, क्या हमारी फूटने हम को जीवित हालत में भी मुर्दे नहीं बना दिए है ? हमारे प्राचार्य देव जगत्पूज्य और विश्वोपकारी थे, उन्होंने अपने उज्वल चारित्र और उपदेशसे भारतमें “ अहिंसा परमो धर्मः" का प्रचार और जनता में शान्ति का साम्राज्य स्थापन किया, माज उ खल लोग उन ऋषियों का उपहास करते हुए अश्लील भाषा और अयोग्य शब्दोमें लेखोंद्वारा अपनी द्वेषाग्नि प्रगट कर रहे हैं इतना ही नहीं पर बेंगाल प्रादि देशोंमे तो हम नास्तिक और म्लेछ के नामसे पुकारे जाते हैं पर आज हमारे नसोमें हमारे पूर्वजों का खून नहीं है वह गौरव नहीं है, वह हिम्मत नहीं है कि हम उन लोगों को मुंहतोड़ उत्तर दें। ___जिन जातियों में हमारा मान महत्व था, हमारी एक ही प्रावाज वे लोग शिरोधार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे, आज वे ही जातियों हमारा अपमान या सामना करने को पग पग पर तैयार है। क्या यह हमारी प्रापसी फूट मत्सरता का कटुक फज नहीं है ? .. इतर जातियों जिन को हम अज्ञान, अपठित और मूर्ख
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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