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________________ (१०) जाति न्याति और संघ शृंखलना. हमारे पूर्वजोंने अपनी व्यवहार कुशलतासे संघ संगठुनरूपी एक बड़ा भारी अभेद्य किल्ला बनाया और उसके अंदर हमारे धर्म और जातियों को इस प्रकार सुरक्षित रक्खी थी कि जहां अज्ञान, अन्याय, अनीति, फूट, कुसम्प और दुराचाररूपी चोरों का किसी हालतमें प्रवेश नहीं हो सक्ता था हमारे संघ संगठुनने बडे २ गजा महागजामों पर भी अपना प्रभाव डाला था और अन्य जातियो भी पूज्यद्रष्टिसे सत्कार किया करती थी; इतना ही नहींपर तीर्थकर भगवान भी उस संघ को आदर की नजरसे देखते थे अर्थात् संघ संगठ्ठन कोई साधारण बात नहीं है पर एक दिव्य चमत्कारिक सक्ती पुंज है कि जिसके जरिए इन्सान मन इच्छित कार्य कर सक्ता है। ... जब से हमारी समाजमें मान ईर्षा ठकुराईने जन्म धारण किया, तब से हमारे संघ संगटुनरूपी किल्ले की दिवारें कमजोर पड़ने लगी पर स्वछन्दचारी स्वार्थीय भागवानों और धनाढयोंने तो उस मजबूत किल्ले की दिवारो को तोड़ फोड़ के उन के पत्थर तक भी इधर उधर फैंक दिए पर उन की काली करतूतों का फल क्या हुआ कि जिस संघ की अवाज राज्य मान्य थी; आज वही संघ राज्य कर्मचारियों की ठोकरें खा रहा है अपने भुजबल पर सर्व कार्य करनेवाले स्वतंत्र संघ को दूसरों की दयापर जीने का समय मा पहूंचा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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