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(१४०) जैन जाति महोदय प्रकरण छठ्ठा. शिलालेख आज भी संख्याबद्ध मिलते हैं; पर उन लोगोंने जैन धर्म क्यों छोड़ा ? क्या जैन धर्म का कममहत्व समझकर छोड़ा था. नहीं ! नही ! ! उन को हमारे गुरुदेवों का सदुपदेश नहीं मिला, गुरूदेवों के दर्शन तक भी नहीं हुए, और उनका सत्संग नहीं रहा जैन जातियोंमें संकुचितता के कारण उनके साथ रोटी बेटी का व्यवहार नहीं रहा; इस हालतमें जैन धर्म को छोड़कर शिव ब्राह्मण मादि इतर धर्म का अवलम्बन लीया और इसी कारण से जैन संख्या कम हो गई । खेर ! गई सो गई, पर आज भी चारों ओर से पुकागें पाया करती है कि हमारी प्रान्तमें मुनि विहार की प्रत्यावश्यकता है पर उन पुकारों को कौन सुनें ? इस बात की दरकार किस को है ? चाहे जैन धर्म, जैन जातियों रसातलमें क्यों न चली जाय ! पर हम को तो हमारे पसन्द किए देश, गांव, और उपाश्रय में ही रहना है।
मैं तो आज भी दावे के साथ कह सकता हूं कि पूर्वाचार्यों की भान्ति हमारी समाज के विद्वान प्राचार्य और मुनिवर्ग कम्मर कस करके प्रत्येक प्रान्तमें घूमकर जैन तत्वज्ञान का प्रचार करें, और पूर्वाचार्यों की माफिक शुद्धि और संगठ्ठन के पीछे लग जावें तो थोड़े ही समयमें चारों ओर जैनधर्म का प्रचार हो जाय; जैन संख्या घट रही है वह भी रुककर अन्य कौम की माफिक जैन जनता की संख्यामें भी वृद्धि होने लग जाय । क्या हमारे समाजनेता और पूज्याचार्य देवों के हृदयमें यह भावना पुन: जन्मधारणकर अपनी तरूणावस्था का परिचय करावेगा ?