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शुद्धि और संगठन.
(१३९) या पब्लिक में व्याख्यान दें। अगर कभी कोई पब्लिक में व्याख्यान देते भी है तो वह कैसा कि जनरञ्जन उपदेश न कि जैन तत्वज्ञान । यह कहना भी अतिशय युक्त न होगा कि हमारे कितनेक मुनिवर खुद भी तत्वज्ञान से अनभिज्ञ है तो वे दूसरों को क्या समझा और कितनेक तो ऐसे दिक्षीत हैं कि जिन को बात करने की भी तमीज नहीं है ऐसे लोगों से समाजोन्नति की क्या आशा रखें ? पूज्य मुनिवरों! आप जैसे त्यागी वैरागी निस्पृही लोग भी जनता के उद्धार कि अपेक्षा कर केवल स्वकल्याण में ही मौन धारण कर लोगें तो जगत् कल्याण कौन करेंगे ।
किननेक नामांकित पट्टी विभूपिन है वे दूसरों का निकन्दन और अपने जीवन की सुघटनाएं लिखानेमें समय बिना रहे हैं, इसी कारण से अर्थात् मुनि विहार और सदुपदेश के प्रभाव से जो लोग वंश परम्पग से जैन धर्म पालते आए थे, जिनके पूर्वजोंने जैन मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई थी आज वे ही जैन धर्म के कट्टर दुश्मन बनकर उन मंदिरों को तोड़ने के लिए तैयार हो गए हैं। यह दोष किस का ? क्या हमारे जैनाचार्य देशोदेश में विहार करते तो माज बंगाल में सारक' जाति के लोग जैन श्रावक थे, वे विधर्मी हो जाते ? मध्यप्रान्त में 'कलार' जाति जैन थी वह अजेन बन जाती ? तैलंग और महाराष्ट्रीय में लंगायत लोग जैन थे गुजरातमें छीपा और पट्टीदार प्रायः सब जैन थे कपोल, मांढ, नागर, अप्रवाल परमार, गोरा, डीशावल नाणावल आदि अनेक जातियों पूर्व जमाने में जैन धर्मोपासक थी और उन के पूर्वजों के बनाए हुए मंदिरों के