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लेखक का परिचय.
( ३१ ) लय को बहुतसी सहायता पहुंचवाई | धन्य है ऐसे विद्याप्रेमी मुनिराज को ! जो ऐसी आवश्यक संस्थाओं की सुधि समय समय पर लेते रहते हैं 1
सूरत में रहे हुए कई लोगोंने इर्षा के वशीभूत हो यह आक्षेप किया कि मुनिश्रीजी भगवती वाचते है पर उन्होंने बड़ी दीक्षा किस के पास ली ? इस पर गुरुमहाराजश्री रत्नविजयजी महाराजने श्राम व्याख्यान में फरमाया कि मुनि ज्ञानसुन्दरजी को मैंने बड़ी दीक्षा दी और उपकेश गच्छ की क्रिया करने का आदेश भी मैने दिया अगर किसी को पूछना हो तो मेरे रूबरू श्राकर पूछ ले 1 पर ऐसी ताकत किस की थी कि उन शास्त्रवेत्ता महा विद्वान और परंम योगिराज के सामने आके चूं भी करे ।
हमारे चरित्रनायकजी की व्याख्यान और स्याद्वाद शैली से वस्तुधर्म प्रतिपादन करने की तरकीब जितनी गंभीर थी उतनी ही सरल थी कि अन्य दो उपाश्रय में श्रीभगवती सूत्र बांचा रहा था पर गोपीपुरा, सगरामपुरा, छापरिया सेरी, हरीपुरा, नवापुरा और देर तक के श्रावक बड़े चौहट्टे:- श्राश्र कर श्रीभगवती सूत्र का तत्वामृत पान कर अपनी आत्मा को पावन बनाते थे ।
इस चातुर्मास में हमारे चरितनायकजी की रचित १२००० पुस्तकें इस प्रकार प्रकाशित हुई ।
५०० बत्तीस सूत्र दर्पण । १००० जैन दीक्षा |
१०००
जैन नियमावली | १००० प्रभु पूजा ।