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________________ (३०) जैन जातिमहोदय. ठहरकर श्रापश्रीने मेवाड़ की भोर पदार्पण किया । जोधपुरनिवासी भद्रिक सुश्रावक भंडारीजी चन्दनचन्दजी भी साथ थे। चतुर्विध संघ मह आपश्री भानपुरा और सायरे होते हुए उदयपुर पधारकर केशरीयानाथजी की यात्रार्थ पधार । वहाँ से लौटकर आप. पाल, ईडर, आमनगर और प्रान्तीज होते हुए अहमदाबाद पधारे । जब अहमदाबाद के श्रावकों को श्राप के पधारने की सूचना मिली तो वे विस्तृत संख्या में मम्मिलित हुए तथा उन्होंने मुनिश्री का नगर प्रवेश बड़े समारोह से स्वागत करते हुए करवाया । इस कार्य में यहाँ के मारवाड़ी संघने विशेष भाग लिया था । पुनः खेडा, मातर, मंजीतरा, सुन्दरा, गम्भीग और बडौदे होते हुए आप झगडियाजी तीर्थपर पधारे । वहाँ गुरुवर्य श्री रत्नविजयजी के आपने दर्शन किये । वहाँ से पंन्यासजी हर्षमुनिजी तथा गुरुमहागज के साथ सूरत पधारे जहाँ आप का बड़ी धूमधाम से अपूर्व स्वागत हुआ। विक्रम संवत् १९७५ का चातुर्मास ( सूरत )। आपश्री का बारहवाँ चातुर्मास गुरुसेवा में सूरत नगर के बड़े चौहट्टे में हुआ । व्याख्यान में प्रापश्री गुरु आज्ञा से भगवतीजी की वाचना सुनाते थे । यद्यपि आप इस समय मारवाड़ प्रान्त से दूर थे तथापि मारवाड़ के जैनियों के उत्थान की तथा ओशियों छत्रालय की चिन्ता आप को सदा लगी रहती थी। इसी हेतु आपने उपदेश देकर ओशियों स्थित जैन वर्धमान विद्या
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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