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लेखक का परिचय.
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विक्रम संवत् १६७४ का चातुर्मास (जोधपुर)
आपश्री का ग्यारहवाँ चातुर्मास जोधपुर में हुआ था | इस वर्ष आपने व्याख्यान में श्री भगवतीजी सूत्र फरमाया था । श्राप के व्याख्यान में खासी भीड़ रहती थी । आप की व्याख्यान पद्धति बड़ी प्रभावोत्पादक थी । श्रोता सदा सुनने को आतुर रहते थे । समझाने की प्रणाली इस कद्र उत्तम थी कि लोग आप के पास श्राकर अपने भ्रम को दूर कर सुपथ के पथिक बनते थे । इतना ही नहीं पर एक बाईकों संसार से विमुक्त कर श्रापने उसे जैन दीक्षा भी दी थी ।
इस चातुर्मास में अपने तपस्या इस भांति की थी । पचोला १. तेला १, इसके अतिरिक्त फुटकल तपस्या भी प्राप किया करते थे | तपस्या के साथ ज्ञान प्रचार के हित साहित्य में भी आप की अभिरुचि दिन प्रतिदिन बढ़ती रही। इस चातुर्मास में कई पुस्तकें तैयार करने के सिवाय निम्नलिखित पुस्तकें मुद्रित भी हुई।
१००० स्तवन संग्रह तृतीय भाग । ५०० डंके पर चोट ।
चातुर्मास समारोहपूर्वक बिताकर श्राप सेलावास रोहट हो पाली पधारे । वहाँ बीमारी फैली हुई थी। वहाँ प्रापश्रीने यतिवर्य श्री माणिक्यसुन्दरजी प्रेमसुन्दरजी के द्वारा शान्तिस्नात्र पूजा बनवाई | फिर वहाँ से विहारकर आप बूसी, नाडोल, वरकारणा, खीमेल, वणी, मुंडाग होते हुए सादड़ी पधारे । यहाँ से स्तवन संग्रह प्रथम भाग तीसरी बार प्रकाशित हुआ । सादड़ी कसबे में आपने सार्वजनिक व्याख्यान भी दिये । यहाँ
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एक मास पर्यन्त