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जन जातिमहोदय.
१००० चौराशी आशातना । १००० व्याख्याविलास प्रथम भाग । १००० श्रागमनिर्णय प्रथमांक । १००० शीघ्रबोध प्रथम भाग | १००० चैत्य वंदनादि । १००० द्वितीय भाग । १००० जिन स्तुति । १०००
तृतीय भाग ।
५०० सुखविपाक मूल सूत्र ।
१२००० कुल प्रतिएं ।
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इस चतुर्मास में आपश्रीने इस प्रकार तपस्या की । अठाई १, पचोला १, तेले ११ । धन्य ! आप कितनी निर्जरा करते हैं । जहाँ आप साहित्य सुधार के कार्य में संलग्न रहते हैं वहाँ काया की भी परवाह नहीं करते । मारवाड़ी जैन समाज कों सरल ज्ञान द्वारा ऐसें महात्माओं ने ही जगृत किया है । इन के जीवन के प्रत्येक कार्य में दिव्यता का आविर्भाव दिख पड़ता है ।
सूरत से विहार कर गुरुमहाराज की सेवा में आप कतारग्राम, कठोर, झगड़ियाजी तीर्थ आये, वहाँ से श्रीसिद्धगिरि की यात्रार्थ
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श्री से आज्ञा लेके कलेसर, जम्बुसर, काबी, गंधार, भइँच, खम्भात्, धोलका, वला, सीहोर, भावनगर और देव होते हुए श्रीपालीताणाजी पधार कर सिद्धगिरि की यात्रा कर आपने मानवजीवन को सफल किया । जो सुरत में आपने मेझरनामा लिखना प्रारंभ किया था वह अनुभव के साथ इसी पवित्र तीर्थ पर समाप्त किया था । फिर हमारे चरित नायकजी अहमदाबाद होते हुए खेड़ा मात्र में सदुपदेश सुनाते हुए पुनः मगड़ियाजी पधार गुरु महाराज की सेवा करने लगे ।