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________________ शुद्धि और संगठन. - (१३३) सरों ने तो कई वर्षों के वर्ष इस निद्रा में ही पूरे कर दिये गए हैं; अलबत कभी-कभी आंखे टमकारा करते हैं और साधारण जन प्रेरणा करने पर कहते हैं कि हम सब जानते है। जैसे किसी सेठ के घर चोर आए, और धनमाल बांध ले जाने की तैयारी हो गई बिचारी शेठानी वार २ कहती है कि शेठजी चोर माल ले जाएंगे पर शेठजी उत्तर में एक ही बात कहा करते हैं कि मैं सब जनता हूं। क्या ऐसे जानकारों को विद्वान वर्ग सिवाय मूर्खा के कोई उपाधि देंगे ? यही हाल हमारे समाजनेताओं का हो रहा है । -माज हमारी मुठ्ठि भर समाज भी दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है, इसाई, मुसलमान, और आर्यसमाजी हमारी समाज को हडपने के लिये मुंह फाड तैयार बैठे हैं और हमारे समाजनेताओं की लापर्वाही और अनेक प्रकार के अनुचित्त व्यवहारों से दुःखी हो हमारे भाई धर्म से तित होने की तैयारी कर रहे है। महाराज उत्पलदेव, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति और महामेघवाहन चक्रवर्ती महाराजा खारबेल के समय जैन जनता चालीस क्रोड होना इतिहास सिद्ध कर रहा है, बाद हमारे प्राचार्यों के मतभेद रूपी संक्रान्ती जैन समाज की. जन्म राशीपर न जाने किसपाए पर आ बेठी कि उस रोज से जैन संसार का हास होता गया क्रमशः महाराजा अमोघवर्ष, वनराज चावडा, और भामराज के गज्यत्व काल में कुमारील भट्ट और शङ्कराचार्य जैसे वादियों के जोरजुल्म के सामने भी टकर खाती हुई वीस कोड जैन जनता अपने पैरोपर खडी थी । तत्पश्चात संक्रान्तीने भयंकर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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