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जैन जाति महोदय प्रकरण छा.
से ही ऐसे शिक्षीत बनावें जो पूर्वोक्त सब बातें सरू से ही सिखाई जाय, बाद जब उनका विवाह सबन्ध किया जाय तो खूब दीर्घ दृष्टि से विचार कर वरकन्या के गुण रूप उम्मर धर्म की समानता पहिले देखें कि वह अपना जीवन सुखपूर्वक निर्वाहती हुई आपको सदैव आशीर्वाद दिया करें इसमें ही आपका भला है ।
( ६ ) शुद्धि और संगठन.
एक समय वह था कि हमारे पूज्याराध्य श्राचार्य देव और समाज नेता शुद्धि और संगठन के कार्यों में दत्तचित हो समाज संख्या नदी के पूर की भ्रान्ति बढाने में अपना तन, मन और धन अर्पण कर जैन जनता की संख्या चालीस क्रोड तक पहुंचा दी थी; आज उन्ही आचार्य और नेताओं की सन्तान शुद्धि और संगन से हजारों को दूर भागी जा रही है जिसके फल स्वरूप जैन जनता की वस्ती प्रमाण मृत्यु के मुंह में जा पडा है; अर्थात् न्तिम श्वासोश्वास ले रहा है। अगर इस असाध्य रोग की चिकित्सा शीघ्रता से न की जाय तो वह दिन नजदीक है कि संसार में जैनों का नाम शेष रह जायगा ।
इस हालत में भी हमारे आचार्य व समाज नेता श्राज कुंभकर्णीय घोर निद्रा में ही सो रहे हैं । अरे ! कुंभकर्णी निद्रा 1 तो केवल छ मास की बतलाइ जाती है, पर हमारे समाज अग्रे