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________________ दम्पति जीवन. - (१३१) में व्यभिचार की कितनी धामधूम मचा दी है ' मधर इंडिया' के उत्तर में ( Father India ) फाघर इंडिया नाम की पुस्तक प्रका शित हो चुकी है जिसको पढने से ज्ञात होता है कि जिस व्यभिचार की हमारे देश में स्वप्न में भी कल्पना नहीं हैं जिसको कानों में सुनने से ही हम महापाप समझते है वह ही घोर पाप आज स्वच्छन्दता के कारण यूरोप में हो रहा है उस रास्ते चलने पर वही पाप हमारे देश को भस्मीभूत न कर दे ? इसपर खूब गहरी दृष्टि से विचार करना चाहिए । हम दम्पति जीवन सुखी बनाने में गृहस्थाश्रम सुचारू रूप चलाने में उनके सन्तान का स्वास्थ्य अच्छा रखने में और वीर सन्तान पैदा करने में स्त्रियों को इतनी शिक्षीत बनानी चाहते हैं कि वह लिख पढ के भले बुरे कृत्याकृत्य को समझ कर सदाचारके रास्तेपर चलती हुई अपने धर्मपर पूर्ण श्रद्धा संपन्न बन जावे, कलाकौसल सीख के अपना सब गृह कार्य दूसरों की विगर सहायता चला सके, सुंदर संस्कारों के कारण अपने पती की सेवा कर पति व्रत धर्म को दृढता के साथ पालन कर सके, अपने सास सुसरादि वृद्ध जनों का विनय वेयावश्च सेवा सुश्रुषा कर उनका हार्दिक आशीर्वाद प्राप्त कर सके, अपनी सन्तान का सुन्दर लालन पालन पोषण कर उनके हृदय में सरू से अच्छे संस्कार डाल उनको सदाचारी नीतिज्ञ और वीर बनावें । समाज अप्रेसरों को चाहिए कि अपने बालबच्चों को पहिले
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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